प्रणाली की प्रबलता
यह चराचर जगत व्यक्ति विशेष से नहीं एक प्रणाली/व्यवस्था से गतिमान है। हर एक प्राणी इस कड़ी से जुड़ा है। सब कार्य अनूठे हैं क्योंकि सब जीव अद्भुत है। हमारे ब्रह्माण्ड की प्रत्येक क्रिया में प्रणाली(SYSTEM) है, चाहें मधुमक्खी द्वारा शहद का निर्माण हो या गृहिणी द्वारा रायते का निर्माण।
हमारा जीवन जब व्यवस्थित होता है हम आनंद मे होते हैं। परन्तु परिस्थितियों वश जीवन अव्यवस्थित होते ही हमारे ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूटता है। हम व्याकुल हो जाते हैं, स्वाभाविक भी है। परन्तु हमारी गलती यह है कि हम निदान तुरंत चाहते हैं। हमारे जीवन की कोई भी समस्या या दुख ऐसा नहीं है जो हम स्वयं हल न कर लें। अंततः वह एक प्रणाली के तहत ही हल होता है। हमें प्रणाली में विश्वास नहीं होता। सुख व दुख जीवन के दो पहलू हैं जो समय के साथ स्वतः समाप्त होते रहते हैं।
जब हम व्यग्र व धैर्यहीन होते हैं तो छल होने की सम्भावनाएं बढ़ जाती है। हमारी इन्हीं वेदनाओं व भावनाओं की नब्ज पकड़ने की अद्भुत शक्ति इन बाबाओं व राजनेताओं के पास होती है। वे मन को शान्ति देने वाला भव्य आश्रम व भाषण की मायावी व दिखावटी दुनिया रचकर यथार्थ से दूर ले जाते हैं। चूँकि हमारे अंदर भक्त बनने का ऐतिहासिक गुण पाया जाता है इसलिए वे लाभ उठाने में सफल रहते हैं।
असल समस्या तब आती है जब ये जनबल देखकर स्वयंभू भगवान समझने लगते हैं। ये प्रणाली को चुनौती देने लगते हैं। हमारे पास इतनी मजबूत प्रणाली है कि हम किसी से भी बेहतर कार्य करवा लें। जब कोई प्रणाली को चुनौती देता है, तो धराशायी भी हो जाता है।
हमें किसी व्यक्ति की अच्छी बातों का अनुसरण तो करना चाहिए, परन्तु अन्ध-भक्त नहीं बनना चाहिए। हमारी प्रणाली पदाभिहित को जनहित में कार्य करने को मजबूर भी करती है। हमें प्रणाली पर आस्था रखनी चाहिए। आखिर पूरा ब्रह्माण्ड भी तो प्रणाली(SYSTEM) आधारित है।
लेखक
विद्या सागर(प्र०अ०)
प्राथमिक विद्यालय गुगौली,
विकास क्षेत्र - मलवाँ,
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