कितना सुन्दर गाँव हमार
कितना सुन्दर गाँव हमार,
सबसे सबकी राम जुहार।
पर उल्टी अब चली बयार,
घटतै जात प्रेम ब्यौहार।
सबसे सबकी राम जुहार।
पर उल्टी अब चली बयार,
घटतै जात प्रेम ब्यौहार।
कक्का दादा माई बाप,
सम्मुख है बस आपै आप।
हृदय बसे गहरे संताप,
न कोइ भैया न कोइ बाप।
सम्मुख है बस आपै आप।
हृदय बसे गहरे संताप,
न कोइ भैया न कोइ बाप।
छल-परपंच रचैं सरपंच,
लाज न आवै उनको रंच।
गाँव प्रधान लड़ावैं जाम,
करैं न उइ धेला भर काम।
लाज न आवै उनको रंच।
गाँव प्रधान लड़ावैं जाम,
करैं न उइ धेला भर काम।
ताल-तलैया औ चौपाल,
नारि-नर्दहा सब बेहाल।
रोजै झगड़ा रोज बवाल,
अब है यहै गाँव का हाल।
नारि-नर्दहा सब बेहाल।
रोजै झगड़ा रोज बवाल,
अब है यहै गाँव का हाल।
जाने कैसा ये बदलाव,
उल्टा पूरा लगै बहाव।
प्रभु से विनती यहै हमार,
सद्बुद्धी दो कृष्ण-मुरार।
उल्टा पूरा लगै बहाव।
प्रभु से विनती यहै हमार,
सद्बुद्धी दो कृष्ण-मुरार।
रचनाकार-निर्दोष दीक्षित
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काव्य विधा- चौपई छंद
काव्य विधा- चार चरणों का सम मात्रिक छंद, प्रत्येक चरण में 15 मात्रायें। चरणान्त गुरु लघु(21) से।
इस छंद का एक और नाम जयकरी या जयकारी छंद भी है।
इस छंद का एक और नाम जयकरी या जयकारी छंद भी है।
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