सन्नाटों की गुफ्तगू में अजब तूफान हैं खामोश लफ्जों में शोर दर्द का बयान हैं हुई है बेमौसम बारिश में कोई साजिश सूनी आँखों में भीगे हुए कुछ अरमान हैं ---- निरुपमा मिश्रा " नीरू "
कोई टिप्पणी नहीं