प्रश्नचिन्ह
तुम्हारी देहरी पर
रखा दीपक
प्रतीक्षा में रहा
वर्षों तलक,
कब दोगे
विश्वास से भीगी
स्नेह की बाती,
एक दिन
अचानक
नेह के आशीष
से भिगोई
आँसुओं में बाती,
अपनेपन की लौ
में जिंदगी लगी
जगमगाती,
दमकते रुप को उसके
देख तुम उसे
अपना बताने लगे,
उसकी सफलता में
अपने योगदान
गिनाने लगे,
फिर से दीपक के
मन में कहीं
अंधेरा पलने लगा,
तुम्हारा ये प्रेम उसे
प्रश्नचिन्ह
बनकर छलने लगा
---- निरुपमा मिश्रा "नीरू "
रखा दीपक
प्रतीक्षा में रहा
वर्षों तलक,
कब दोगे
विश्वास से भीगी
स्नेह की बाती,
एक दिन
अचानक
नेह के आशीष
से भिगोई
आँसुओं में बाती,
अपनेपन की लौ
में जिंदगी लगी
जगमगाती,
दमकते रुप को उसके
देख तुम उसे
अपना बताने लगे,
उसकी सफलता में
अपने योगदान
गिनाने लगे,
फिर से दीपक के
मन में कहीं
अंधेरा पलने लगा,
तुम्हारा ये प्रेम उसे
प्रश्नचिन्ह
बनकर छलने लगा
---- निरुपमा मिश्रा "नीरू "
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