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घास नुचवा मास्टर साहब

उस समय उनकी उम्र 59 साल की थी शरीर दुबला पतला पर गजब की फुर्ती वाला था वो जूनियर स्कूल में प्रधानाध्यापक थे और नाम था कामता प्रसाद ।मन बचन और कर्म से स्कूल को समर्पित या यूँ कहे कि स्कूल और शिक्षा उनकी आत्मा में बसती थी उनका विद्यालय सरकारी होने के बाबजूद इलाके के सबसे अच्छे स्कूल में गिना जाता था और क्यूँ ना गिना जाये सुबह से लेकर शाम तक वो अपना सारा काम जिम्मेदारी से पूरा करते थे ।बच्चो से उन्हें बहुत प्यार था इसलिए बच्चो की उपस्थिति भी शत प्रतिशत रहती थी  शिक्षा विभाग के कई बड़े अधिकारी उस स्कूल में आकर मास्टर साहब की तारीफ कर चुके थे ।मास्टर साहब अपने रिटायरमेंट के नजदीक पहुँच कर बड़ा सुकून महसूस करते थे और कहते थे कि अपना काम ईमानदारी से करो तो रात को नींद बहुत अच्छी आती है फिर अगर मैंने अच्छा किया होगा तो ऊपर वाला भी मेरे साथ अच्छा ही करेगा
    सरकार शिक्षा के प्रति बहुत गंभीर थी इसलिए उसने गरीब बच्चो को अनिवार्य शिक्षा के लिए शिक्षा अधिकार अधिनियम कानून लागू कर दिया और शिक्षा विभाग के अधिकारी उस अधिनियम की शर्तो और निर्देशों का पालन करवाने के लिए लगातार विद्यालयों का निरीक्षण कर रहे थे ।मास्टर साहब आश्वस्त थे कि उनका स्कूल मानकों पर खरा उतरेगा और अगर एक आध कमी निकलेगी तो वो उसे सही कर लेंगे ।
  उस दिन सोमबार था इसलिए मिड डे मील में सब्जी रोटी बननी थी और मास्टर साहब रसोई में खड़े गेहू तुलवा कर दे रहे थे ।तब तक दो अधिकारियो ने तेज़ी से स्कूल में प्रवेश किया और जब तक मास्टर साहब अपने कमरे में पहुचते तब तक विद्यालय के अभिलेख उनके हांथो में पहुँच चुके थे ।मास्टर साहब ने नमस्कार कर उनका परिचय पुछा तो कोई जबाब नहीं मिला ,खैर रजिस्टर दुरस्त थे सो अधिकारी कक्षा में पहुँच कर बच्चों से सवाल जबाब करने लगे जिनका संतोषजनक उत्तर मिला तो बाहर निकलकर मास्टर जी से बोले "वैरी गुड "।अब बारी भौतिक निरीक्षण की थी चूंकि जुलाई का महीना था और स्कूल एक माह बाद खुला था इसलिए भवन के पिछले हिस्से में काफी घास जम आयी थी पर अधिकारी महोदय ने केवल इतना कहा कि आपका स्कूल काफी अच्छा है ये घास भी साफ़ करवा लीजिये ।
       घास बगैरा साफ़ करवाने के लिए कोई पैसा नहीं आता था और विद्यालय रख रखाव का पैसा पहले ही ख़त्म हो चुका था  नए वर्ष का अनुदान अभी तक नहीं मिला था इसलिए घास खुद ही साफ़ करना उनकी मजबूरी थी और उनके इन कार्यो में बच्चे भी उनकी खूब मदद करते थे चूँकि ये सामुदायिक सहभागिता के अन्तरगत आता था और बच्चों को भी ऐसे काम करने में खूब मज़ा आता था सो शनिवार को इन्टरवल के बाद ये काम करवाए जाते थे ।

वक़्त को शायद स्कूल और मास्टर साहब की खुशियाँ मंजूर नहीं थी ,अगले दिन गाँव के एक सज्जन अपना वोट बनबाने स्कूल जा पहुचे ।सौभाग्य से मास्टर साहब को बी. एल. ओ. की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी मिली हुई थी ,मास्टर साहब कक्षा में व्यस्त थे सो उन्होंने थोड़ा इंतज़ार करने को कहा और अपना पाठ ख़त्म करके उनसे बातचीत प्रारंभ की तो पता चला कि वे इसी गाँव के एक रसूखदार व्यक्ति है और दिल्ली में रहते है उनका वोट कट गया है और दोबारा बनबाना चाहते हैं। मास्टर जी ठहरे ईमानदार सो उन्होंने वोट बनाने से मना कर दिया और यहीं से मास्टर साहब के बुरे दिन शुरू हो गए

     इस घटना के तीसरे दिन उन्होंने अपना सफाई अभियान चालू कर दिया और स्वयं खुरपी लेकर बच्चों के साथ घास काटने लगे ,तब तक एक समाचार चैनल के पत्रकार कैमरा लेकर स्कूल में आ धमके और मास्टर साहब और बच्चों की रिकॉर्डिंग करने लगे ।रिकॉर्डिंग करके उन्होंने माइक मास्टर साहब के सामने कर दिया और बच्चों से मजदूरी कराने का कारण पुछा ।मास्टर साहब ने उन्हें सारी बाते बता दी और कहा कि इसमें कुछ भी नियम के खिलाफ नहीं है ,पर पत्रकार महोदय उनके जबाब से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने अपने चैनल पर समाचार चला दिया  और वेरहम अध्यापक ,गुलामी की प्रथा ,बंधुआ मजदूरी ,मासूमों से खिलवाड़ आदि -आदि शब्दों का प्रयोग करते हुए शिक्षा विभाग और मास्टर साहब का जनाजा निकाल दिया। मामला तूल पकड़ गया था सो बाल श्रम उन्मूलन आयोग ने शिक्षा डायरेक्टर को नोटिस भेज दिया सांसत में आये डायरेक्टर ने बी. एस. ए. की गर्दन पकड़ ली अगले दिन सभी अधिकारी और मीडिया बाले स्कूल आ धमके और तरह तरह के सवाल जबाब गाँव वालों और बच्चों से पूछने लगे गाँव वाले मास्टर साहब के पक्ष में थे सो उन्होंने कोई विरोध नहीं किया पर एक सज्जन जिनका वोट नहीं बना था उन्होंने खूब विरोध किया मीडिया ने विद्यालय में ढेर सारी कमियाँ निकालकर दिन भर लाइव रिपोर्टिंग की और अधिकारियों ने कागजी रिपोर्टे तैयार की ।मास्टर साहब दिन भर जबाब देते देते पक गए और रात तक राष्ट्रीय मुद्दा बन गए ।


  अधिकारियों की प्रस्तुत रिपोर्ट पर तत्काल कार्यवाही अमल में लाते हुए मास्टर साहब को सस्पेंड कर एक उच्चस्तरीय जांच समिति गठित कर उनका वेतन भी अग्रिम आदेशों तक रोक दिया गया। मास्टर जी को अपनी ईमानदारी पर पूर्ण भरोसा था सो उन्होंने ज्यादा भागदौड़ नहीं की एक दो आवेदन जरूर दे दिए ।जनपद के शिक्षक संगठन मास्टर साहब के प्रकरण को हथियार बनाकर धरना प्रदर्शन करने लगे पर मामला ऊपर के स्तर का होने के कारन कोई हल नहीं निकला। कुछ समय तक लोग उनकी आर्थिक मदद करते रहे पर धीरे धीरे लोगो ने हाँथ खीच लिए ।6 माह तक वेतन ना मिलने से उनकी आर्थिक स्थिति अत्यंत ख़राब हो गयी ।


   उनके घर में कुल चार लोग थे बेटा इंजीनियर बनने की पढाई कर रहा था और बेटी शिक्षा पूरी कर के घर बैठी थी और उसकी शादी तय कर दी गयी थी बेटे की फीस भरने में बैंक में जमा पूँजी भी ख़त्म हो गयी उधर बेटी के ससुराल बाले शादी का दवाब बनाने लगे पर मास्टर साहब पैसे की तंगी के कारण शादी करने में असमर्थ थे इसलिए लड़के वालों से समय बढ़ाने का बराबर अनुरोध कर रहे थे पर आखिर बात कब तक टलती लड़के बालो ने एक दिन दो टूक शब्दों में कह दिया कि आप दूसरा लड़का देख लें ,उधर उनकी लड़की लड़के से फ़ोन पर बात करते करते उसे अपना जीवन साथी मानने लगी थी सो वो सदमा वर्दास्त ना कर सकी और एक रात को फांसी लगा ली ।पूरा परिवार गम में डूब गया पर मोहल्ले बाले तरह तरह की बातें कर रहे थे कोई कहता चक्कर चल रहा होगा कोई कुछ, बातों की खुसुर पुसुर मास्टर साहब तक भी पहुच चुकी थी पर वो खून का घूँट पीकर रह गए इधर पूरा साल बीत गया पर जांच समिति की रिपोर्ट नहीं आ पायी और मास्टर जी रिटायर हो गए मामला लंबित होने के कारन उनका फण्ड और पेंशन के भुगतान पर रोक लगा दी गयी ।


   एक दिन सुबह मास्टर साहब को जाने क्या सूझी खुरपी उठाकर अपनें पुराने स्कूल जा पहुचें और घास साफ करने लगे वहां के नए हेड ने जब रोका तो वोले तुम्हे ससपेंड होना है क्या ,वो अध्यापक इनसे परिचित थे और मनोदशा समझते थे सो चुप रह गए ।अब तो ये रोज का क्रम बन गया सुबह जागते और किसी एक स्कूल पहुचकर घास साफ कर डालते ,धीरे धीरे पूरे इलाके में उनकी हरकत की खबर फ़ैल गयी ।तभी इस घटना पर एक टी. बी. चैनल की निगाह पड़ गयी और फिर से एक नया समाचार बन गया कि विभागीय उत्पीडन का शिकार बना शिक्षक बना "घास नुचवा" ।

  टी. बी. पर खबर चलते ही शिक्षा अधिकारिओं के होश फाख्ता हो गए और उत्पीडन की जांच के लिए एक नयी समिति गठित कर दी गयी जिसके डर से पुरानी जांच समित ने तुरंत अपनी रिपोर्ट लगा दी रिपोर्ट में लिखा " जांच उपरांत पाया गया कि इस घटना में मास्टर साहब का कोई दोष नहीं है उनकी झूठी शिकायत गाँव के एक व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत इर्ष्या के कारण की गयी थी और उन्ही के द्वारा मीडिया को बुलाया गया था  चूँकि विद्यालय में साफ सफाई का कोई पैसा नहीं भेजा जाता है ऐसे में सामुदायिक सहभागिता के अंतर्गत बच्चों से कुछ कार्य कराया जाना गलत नहीं है विभाग को आदेशित किया जाता है कि कामता प्रसाद जी को तत्काल बहाल करते हुए उनके सभी लंबित भुगतान 15 दिन में कर दिए जाएँ और हर एक स्कूल में सफाई कर्मी की नियुक्ति करने हेतु सरकार द्वारा आवश्यक कदम उठाये जाने की समिति सिफारिश करती है"

   रिपोर्ट आते ही चारो तरफ मास्टर साहब की वाह वाह होने लगी, विभाग और शिक्षक संघो ने उन्हें सम्मानित करने के लिए एक बड़े कार्यक्रम की घोषणा कर दी पर तब तक मास्टर साहब घर छोड़कर जा चुके थे कहाँ गए ये किसी को पता नहीं था। आज भी देश भर में घास नुचवा द्वारा घास नोचने की ख़बरें आती रहती है पर पता नहीं ये वही मास्टर साहब हैं या उनका कोई भाई बंधू ।

(कहानी में भले ही मास्टर साहब को न्याय मिल गया हो पर यथार्थ में आपको आज भी सैकड़ो अध्यापक घास नुचवा बनें मिल जायेंगे जो न्याय का इंतज़ार कर रहे हैं )

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