बलात्कारी हमारी पहचान क्यों हों ?
देख रही हूँ कि निर्भया से सम्बंधित वृत्तचित्र पर देश में दो राय बन गयी हैं ,एक जो वृत्तचित्र पर प्रतिबन्ध लगाने के पक्ष में है और दूसरे उसे दिखाए जाने के पक्ष में है.प्रतिबन्ध लगाने के पक्ष में इसलिए कि निर्भया पुनः पुनः अपमानित होगी और प्रतिबंधित न करने के पक्ष में इसलिए कि सब देखें कि आखिर एक बलात्कारी की मानसिकता कितनी नीच हो सकती है.
मुझे लगता है ये वृत्तचित्र मात्र मानसिकता समझने का प्रयास नहीं, कोई भी महिला जिसे पुरुषों की वक्षस्थल से पैरों के बीच तक झांकती उसकी घूरती दृष्टि का अनुभव है या कोई भी चरित्रवान पुरुष जिसे दुनियादारी और अपने आस पास के दूसरे पुरुषों के सामान्य वार्तालाप के प्रत्यक्ष अर्थों के पीछे छुपे परोक्ष अर्थ समझ आ जाते हैं , को बलात्कारियों की मानसिकता समझने में कोई विशेष अध्ययन या प्रयास नहीं करना पड़ता. सबको जिसके पास पर्याप्त और सामान्य बुद्धि और भावनाएं हैं बलात्कारियों की मानसिकता समझ लेता है. इसके लिए किसी साक्षात्कार की आवश्यकता ही नहीं थी.
ये साक्षात्कार एक कुत्सित प्रयास भर था भारतवर्ष की सभ्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाने का !
भारत का आम जन सोशल मीडिया के जरिये अपनी परम्पराओं के प्रति जागरूक दिखने लगा है , अपनी रीतियों और परम्पराओं पर प्रश्न करने वालों को वह उत्तर देने लगा, पलट का प्रश्न पूछने लगा ,वह खुद पर शर्मिंदा नहीं गर्वान्वित होने लगा,real India के नाम पर गरीब,मैले कुचैले,रोगी और शोषित पीड़ित मात्र को दिखाने पर वह अमीर,विकसित और हँसता खेलता भारत भी दिखाने लगा तो अब real India के नाम पर बलात्कारियों और उनकी मानसिकता को बाजार बनाने का ये प्रयास था . ताकि पूरा विश्व जो भारत को अब तक एक गरीब और लाचार देश के रूप में जानता था अब बालात्कारियों और महिला शोषकों के देश के रूप में जाने.
हाँ ! हैं हम एक ऐसे देश जिसमे तमाम कमियां हैं पर हम ऐसे देश कतई नहीं जिसमे कोई अच्छाई है ही नहीं. हमारे यहाँ भ्रष्टाचार है तो ईमानदारी पर अपना सर्वस्व लुटा देने वाले भी हैं.इसकी गणना समाचारों से नहीं अपने आस पास के लोग देख के करिए , जवाब मिल जायेगा.स्वार्थी लोगों के बीच अनगिनत निस्वार्थ लोग भी हैं और वो भी हमारा देश हैं ! महिलाओं को भोग्या मानने की प्रवृत्ति रही है , पर हमारे आस पास पीड़ित बहुओं और बेटियों से अधिक संख्या अपने पिता की राजदुलारियों और घर की सत्ता संभाले गृह्स्वमिनियों की है. १२० करोड़ में बहुत से बालात्कारी हैं तो बहुत से उनको बीच सड़क पर घसीट के मारने वाले भी हैं.
हम भी दूसरों की तरह अपने वस्त्रों के भीतर नग्न हैं पर वे हमसे अधिक सुन्दर कदापि नहीं.
निर्भया का क्रूर बालात्कार साधारण घटना नहीं थी, अपराधियों को बिना विलम्ब मृत्युदंड से कम कुछ भी नहीं होना चाहिए. पर ये घटना भारतवर्ष की पहचान नहीं बन सकती. हमारे बीच के राजनैतिक ,सामाजिक और जातिगत मतभेद इतने गहरे नहीं कि तीसरा हमारे मजे लेगा और हमें बीमार मानसिकता का देश बताएगा. संज्ञान हो कि वृत्तचित्र बनाने वाली ब्रिटिश महिला हमें बीमार मानसिकता का बता रही है.
लन्दन में cctv कैमरे न लगे होने पर वह कैसा शहर होता है ये तो सबने पढ़ा ही होगा और इन कैमरों के होने पर भी उनका ब्रिटेन जिहादी जॉन का जनक है मत भूलिए.
हमारे देश में महिला के साथ क्रूरता से पेश आने वाले अपराधी हैं तो उनके यहाँ सम्पूर्ण मानवता के दुश्मन पलते हैं ,पोषित होते हैं. ISIS जैसे मानवता के शत्रु संगठनों में अमेरिका और ब्रिटेन के नागरिकों की संलिप्तता के सबूत मौजूद हैं पर उनमे कोई भारतीय इस तरह सक्रिय नहीं पाया गया है. अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पूरे देश तबाह कर देने वाले देश हमें बीमार मानसिकता का बताएँगे ??
मैं अपील करती हूँ कि महिलाएं स्त्रीगत विमर्श से ऊपर देश के लिए और शेष सभी लोग राजनैतिक विचारधाराओं से अलग इस वृत्तचित्र का ,उसे बनाने वालो का और उसका समर्थन करने वालों का विरोध करें. वरना हम सब बलात्कारियों के देश के रूप में पहचाने जायेंगे.
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