गिरना और संभलना होगा
'संघर्षों ' का आधा जीवन...
अब आगे ना जाने क्या... ?
बचपन कटा बिना बचपन के....
खेल-खिलौनें जानें ना..... !
अब आगे ना जाने क्या... ?
बचपन कटा बिना बचपन के....
खेल-खिलौनें जानें ना..... !
तपी दुपहरी नंगे पैरों ,
इधर-उधर की दौड़ रही.....
कब अम्मा घर वापस आये....
जो हर तिनके को जोड़ रही...
इधर-उधर की दौड़ रही.....
कब अम्मा घर वापस आये....
जो हर तिनके को जोड़ रही...
तिनके कलके,उस आँचल के
धीरे-धीरे बड़े हुये,
माँ ने जल के,हर इक पल के
सारे काँटें स्वयं छुये,
धीरे-धीरे बड़े हुये,
माँ ने जल के,हर इक पल के
सारे काँटें स्वयं छुये,
लेकिन जीवन के काँटों से ,
हमें उलझना ही होगा....
माँ की अंगुली से जो सीखा
उसे समझना ही होगा...
हमें उलझना ही होगा....
माँ की अंगुली से जो सीखा
उसे समझना ही होगा...
जीवन भ्रम की,
हर उलझन से
दर्द मे डूबी हर,
सिहरन से,
अपने आप उबरना होगा...
चलती साँसों
के अनुक्रम मे...
हर पड़ाव मे,
अपने श्रम से
गिरना और संभलना होगा...
हर उलझन से
दर्द मे डूबी हर,
सिहरन से,
अपने आप उबरना होगा...
चलती साँसों
के अनुक्रम मे...
हर पड़ाव मे,
अपने श्रम से
गिरना और संभलना होगा...
(सुधांशु श्रीवास्तव)
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