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स्वयं को मानव कहतें हैं

स्वयं को मानव कहतें हैं


इस धरती पर रहते हैं हम,और स्वयं को मानव कहते हैं।
सब कुछ करते अपने स्वार्थ को, और स्वयं को उत्कृष्ट कहते हैं।
केवल और केवल उपभोग है लक्ष्य, फिर भी स्वयं को दानी कहते हैं।
धरती कितना देती हमको,भूल यह पल में जाते हैं।
उसका सागर उसकी नदियां,और स्वयं को स्वामी कहते हैं।
उसके पर्वत उसके बादल ,वृक्ष- झरने फल -फूल  सरोवर।
हो मयंक -भानु समीर या जल,पर स्वयं को ईश्वर कहते हैं।
लिया है हमने केवल  इससे,और इस धरती पर ही रहते हैं।
करते सब कुछ बर्बाद यहां,और घमंड से ये कहतें हैं।

इसपर है अधिकार हमारा,और धरती को माता कहतें हैं।
ऐसा कोई अपराध नहीं जो,हमनें अब तक किया ना हो।
ऐसा कोई कष्ट नहीं जो, हमनें  इसको दिया ना हो।
काटे वृक्ष उजाड़े जंगल,जो अंग गरिमा हैं धरती की।
कुदरत के इस दोहन को हम,औद्योगिक उन्नति कहतें हैं।
ताल तलैय्या सूख गए सब, फसलों का भी नाश कर दिया।
बंजर कर दिया इस धरती को, डाल कर उसमे खाद-प्रदूषण।
वर्तमान के इस विनाश को,हम भविष्य का विकास कहतें हैं।
वास्तव में क्या हम मानव हैं?और इसी धरती पर रहते हैं!  

✍️
 सादिया बी (स.अ.)
 प्राथमिक विद्यालय अकबरपुर
   हरिहरपुररानी
   जनपद - श्रावस्ती

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