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बेटियां होती है पराई

बेटियां होती है पराई   


बेटियां पराई होती हैं,
 यह,सुना करती थी,।
मायके से ससुराल तक ,
बेटियां हैं ,
सचमुच में पराई 
यह अब रोज देखा करती हूं ।
क्या बेटी दिवस मनाने की
 बात करते हो,
बेटियां बनके बहू ,
बिन वजूद के,
 रात दिन सिसकती हुई,
अक्सर ही देखा करती हूं ।
मानने को तो नवसृष्टि की आधार,
अतुलनीय कर्मो की खान,
ईश्वर का अनमोल वरदान है बेटी,
कहीं न कहीं अपमानित होती,
अक्सर देखा करती हूं ।
आंखों में खौफ, दहशत में जीती, हर शय हर अंधेरे में घबराती हुई अक्सर देखा करती हूं ।
खुशियों का संसार 
परिवार को जोड़े रखने का
आधार है बेटी,!
फिर भी कई बार 
अपनों से ही टूटते हुए 
अक्सर देखा करती हूं ।
शीतल समीर सी बहती है 
सब रोगों की मीठी दवा है बेटी, फिर भी कड़वी अभद्र,
बातों को सुनते,
अक्सर देखा करती हूं ।
मात,पिता का मान है 
आंगन की पावन तुलसी है बेटी, दामन अपवित्र करते कई बार 
हर दिन अखबारों में,
 नई सुर्खियां बनते,
अक्सर देखा करती हूं। 
बेटी जन्म का अभिमान है 
बेटी की सुरक्षा ना कर पाते 
बेबस मां बाप को,
अक्सर देखा करती हूं।
हां तभी तो,
बेटियां पराई होती हैं
समाज में होते,
परायेपन का व्यवहार !
अक्सर देखा करती हूं ।।

✍️
दीप्ति राय (दीपांजलि )
सहायक अध्यापक
प्राथमिक विद्यालय रायगंज खोराबार गोरखपुर

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