शिक्षक सुनता है
शिक्षक सुनता है
व्यथा विस्तार होकर
जग में फैलता है
व्यथा है यह शिक्षक की
मेरे भीतर का शिक्षक सुनता है,,।
गुजर रहा अब दौर ,,,
गुरुओं के सम्मान का,,
गुरु अनादर के भय से,,
अब प्रतिदिन थर्राता है ।
ऊंचे ऊंचे फरमाना ,स्कूली इमारतों से वह अब घबराता है।
याद कर उन छोटे-छोटे
सुकून भरे गुरुकुलो को
मन ही मन मुस्कुराता है ।
व्यथा मेरे भीतर का
शिक्षक सुनता है,,,।
ज्ञान का गुरु अब ,,
अज्ञानी कहलाता है !
धन-संपत्ति सुविधाओं का लोभ उसे,,,,!
यह अक्सर सुनने में आता है।
गुरु ज्ञान असीमित,,
पर कौन ज्ञान तत्व के
सार को पूर्ण समझ पाता है ।
शिष्यों की कतार,,,
गुरु ज्ञान से दीर्घ ,,,
सच्चा शिष्य कहां है !
जो गुरु शब्द को ,,
सार्थक कर पाता है ।
वितरित करता भंडार आचरण सभ्यता मृदुलता का ,,,
निस्वार्थ हो कठिन कंटक पथ पर कोमल पग को ,,,
चलना भी बताता है ।
बदले में मगर केवल सभी की आंखों में सम्मान खोजता है
मगर आज कहीं भी उसे वह सम्मान मिल नहीं पाता है ।
बस,,,,विवशताओ से
लड़ता भिड़ता खुद को पाता है।
संकीर्ण सोच संकीर्ण सुविधाओं में
हर दिन एक नया आयाम लाता है
फिर भी शिक्षक की व्यथा
कौन समझ पाता है।
व्यथा है यह शिक्षक की
मेरे भीतर का शिक्षक सुनता है ।।
✍️
दीप्ति राय (दीपांजलि )
सहायक अध्यापक
प्राथमिक विद्यालय रायगंज खोराबार गोरखपुर
बेहतरीन
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