होली
रंग गुलाल उड़े जग हर्षित उत्सव आवत है जब होली।
ऊँच न नीच रहे तब कोय मनावत आपस में सब होली।
ढोल बजे सब नृत्य करें मिल के यह अद्भुत है ढब होली।
भेद मिटें सब एक रहें यह देश बढ़े सुख है तब होली।
रचनाकार- निर्दोष दीक्षित
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काव्य विधा- मत्तगयन्द सवैया छंद
शिल्प- चार चरण
प्रत्येक चरण में
7 भगण+22
211×7+22
प्रत्येक चरण में
7 भगण+22
211×7+22
:)
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