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बच्चों बिना शिक्षक दिवस

बच्चों बिना शिक्षक दिवस

ये शिक्षक दिवस कुछ अधूरा सा है
अबकी ना रौनक ना पूरा सा है
सूना है आंगन, बगिया के फूल भी मुरझाए
बसंत के मौसम में जैसे पतझड़ हो जाए
ना है बच्चों की उत्सुकता
न शोर ना शराबा
ना लड़ी का लगना
ना केक को सजाना
ना बच्चों की खिलखिलाहट
ना मीठी सी मुस्कान
कोई तो करो
इसका जल्दी समाधान
कैसा है ये साल
जो खुशियां ले गया
ऐसा लगता बच्चों
मेरा सब कुछ छीन गया
स्कूल की दीवारें
जैसे पूछ सी रही है
इस बार तुम क्यों नहीं आए?
अब मुझ पे लड़ी कौन लगाएगा
अपने इन नन्हे हाथों से
मुझको कौन अब सजाएगा?
कक्षा का ये बेंच
अब शांत सा पड़ा है
ना बैठने की मारा मारी
ना कोई भी खड़ा है
स्कूल की ये कुर्सियां
इस बार क्यों सजी नहीं?
इस पर मैम बैठेंगी 
ऐसी मीठी सी लड़ाई
क्यों दिखी नहीं?
सूना है ये दिन
सूना हर पल
बच्चों तुम्हारी याद में
हर बार, बार बार याद आता है
बस गुजरा हुआ कल
गुजरा हुआ कल 🙂🙂

✍️
साधना सिंह(स. अ.)
प्रा. वि. उसवाबाबू
खजनी, गोरखपुर

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