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अनमोल रिश्ते

अनमोल रिश्ते

रिश्ते जो अनमोल कभी थे,
बेमोल वही आज बिकते हैं।
जब हमने थोड़ी आंँखें खोलीं,
दोस्त भी कम अब दिखते हैं।।

जेबें  जिनकी ‌भरीं-भरीं हैं,
हृदय से बिल्कुल रीते हैं।
परहित का है ध्यान कहांँ,
वे अपने लिए बस जीते हैं।।

सम्बन्धों की तुरपाई टूटी,
नित गाँठें बनती रहती हैं।
गांँठों को सुलझाए कौन,
उलझन बनती रहती हैं।।

जुटने के आसार कहांँ,
हर पल भौहें तनती हैं।
कौन किसे समझाएगा,
बात नहीं अब बनती हैं।।


✍️
अलकेश मणि त्रिपाठी "अविरल"
(स.अ.)
पू.मा.वि.- दुबौली
विकास क्षेत्र- सलेमपुर
जनपद- देवरिया (उ.प्र.)

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