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अंग्रेजी की सनक

अंग्रेजी की सनक

       गणित की समस्या चुटकियों में हल करना उसके लिए आम बात थी लेकिन अंग्रेजी का नाम सुनते ही उसकी रूह कांप जाती। उसका नाम था - 'नरेश'।  मेरे साथ ही दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर, गोरखपुर में शिक्षा संकाय में B.Ed. का प्रशिक्षण ले रहा था । वह गणित का मास्टरमाइंड था, इसलिए उसे सहपाठियों ने "हीरो ऑफ मैथ", "मैजिशियन माइंड वाला" तथा "पजोनियम मैन" का खिताब दे रखा था।  मैं उसकी विद्वता से कायल होकर उसे "रामानुजम" कहा करता। उसकी लॉजिकल प्रश्न, सामान्य ज्ञान और जनरल अवेयरनेस में भी अच्छी पकड़ थी लेकिन अंग्रेजी में------।

      उसे कभी अपने पर, कभी माता-पिता पर, तो कभी अंग्रेजीयत पर गुस्सा आ जाता। वह लॉर्ड विलियम बैटिंग और मैकाले को धूर्त, चालबाज और कूटनीतिज्ञ तक कहने में भी संकोच ना करता। रामानुजम ने स्नातक स्तरीय SSC का प्री परीक्षा पास कर लिया था। उसे मुख्य परीक्षा की चिंता सता रही थी।

        गोधूलि जाने वाली थी। हम बातें करते हुए इंदिरा नगर की बूढ़ी गली से निकल रहे थे। बातचीत के क्रम में ही रामानुजम ने SSC की मुख्य परीक्षा की चिंता जाहिर करते हुए कहा, "यार, परीक्षा करीब आ चुकी है और निगोड़ी अंग्रेजी से इस बार 100 प्रश्न आएंगे समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं?"

       मैंने सलाह फरमाया, "किसी कोचिंग संस्थान का सहारा लो , जिसमें 'क्रैश कोर्स' चलाया जा रहा हो।"  रामानुजम ने नार्मल मुद्रा में कहा, "ठीक ही कह रहे हो------।"

        सब्जी बाजार आ चुका था। हम एक दुकान पर गए। उस दुकान से एक महिला के साथ 5 वर्षीय बच्ची जो सब्जियों के नाम अंग्रेजी में बोले जा रही थी - मम्मा! पंपकिन-- रैडिस--- टोमेटो--- यह फ्रेश है --इसे ले लीजिए ---उसे ले लीजिए आदि।

        रामानुजन की दृष्टि स्वभावत उस बालिका की ओर टिक गई, शायद वह अपने अतीत की कमियों को ढूंढने में मशगूल हो गया।  जब वह महिला चली गई तो मैंने उसका ध्यान तोड़ा - 'रामानुजम! सब्जी लेना----।'  तब रामानुजम ने बड़े अपराधी स्वर में कहा,  "काश! मैं भी बचपन में इतना सीख पाता।"

        उसने पुनः पैंतरा बदलते हुए कहा , "माता- पिता ने तनिक ध्यान ही नहीं दिया।  अरे ,ध्यान भी कैसे देते, वे तो खुद ही अशिक्षित हैं ------- किसी तरह प्राइमरी स्कूल में दाखिला दिला दिया और उनकी जिम्मेदारी खत्म ------। हम सब्जी लेकर रुखसत हुए।

         दैनिक समाचार- पत्रों में तमाम कोचिंग संस्थाओं के लुभावने ऐड पढ़कर रामानुजन के हृदय प्रकोष्ठ में भूचाल सा आ जाता। किसी कोचिंग संस्थान का सहारा लेने की मेरी सलाह तो उसे अच्छी लगी थी लेकिन रुपयों की कमी ही आड़े आती थी। सोचकर वह व्यथित हो जाता कि रुपयों का इंतजाम कहां से हो? ट्यूशन ही एकमात्र जरिया रहा, जिससे मासिक खर्चा निकल जाता। अब तक के बचाव के ₹2500 शेष थे। चिर संचित सी धनराशि एम0एड0 में प्रवेश करने हेतु बचाए रखे था लेकिन उसे भी अंग्रेजी के नाम पर कुर्बान कर देना चाहता है। उसने मुझे कोचिंग संस्थान चलने के लिए कहा और मैं नहीं ना कर सका।

        रवि रश्मियां मुंडेर पर चढ़ आई थी। प्रकाश का कौतुक दैनिक समय को निकलता जा रहा था।  9:00 बज चुके थे । हम कोचिंग संस्थानों की राह चल पड़े।  पथ के दाहिनी ओर "चाणक्य कोचिंग" दिखा।  रामानुजम ने कहा, "आंशिक! चलो इसी कोचिंग में चलते हैं।"

        मैंने स्वीकृति में सिर हिलाया और कोचिंग संस्थान की ओर बढ़ गए। चपरासी हमें कार्यालय तक ले गया।  डायरेक्टर साहब आराम कुर्सी पर बैठे रजिस्टर से जूझ रहे थे। कार्यालय हवादार था।  उसमें बहुत से ही सलीके से राजनेताओं , देशभक्तों और विद्वानों के चित्र टांके गए थे।
     

       अब हम डायरेक्टर साहब से मुखातिब हुए। डायरेक्टर साहब ने पता वगैरह पूछकर फॉर्मेलिटी पूरी की और सामने इंक्वायरी फार्म रख दिए रामानुजम फॉर्म फिलअप करने लगा।
        

         डायरेक्टर ने सफलता की गारंटी की डींग हांकते हुए कहा, "हम केवल वादा ही नहीं करते अपितु करके दिखाते भी हैं, हम केवल पढ़ाते ही नहीं अपितु सिखाते भी हैं।"  हम उनकी बातें बड़े ध्यान से सुनते रहे उन्होंने आगे कहा, "स्वर्ग के सम्राट को यह खबर कर दो, अगर उसे देखना है मेरी उड़ान। तो थोड़ा ऊंचा और उठा ले आसमान।।

 
       रामानुजम डायरेक्टर साहब की बातों से बहुत प्रभावित दिखा। वह उनकी बातों का सिर हिला हिला कर अनुमोदन भी किए जा रहा था लेकिन उनकी बातें कितनी सत्य हो सकती हैं , मैं ढूंढने में जिक्र किया तो वे बड़े ही सहज मुद्रा में बोले , "आपके क्रैश कोर्स की फीस  ₹8000 रखी गई है।"

         रामानुजन ने कहा, "सर! कुछ डिस्काउंट हो सकता है?"  डायरेक्टर साहब ने कहा, "यह कोई बनिए की दुकान नहीं जो मोलभाव किया जाए।"
      

        उनकी बातें सुनकर हम मौन हो गए । रामानुजम को जैसे काठ मार गया हो। उसने मुझे एक टक देखा और उसकी निगाहें वहां से चलने में ही भलाई की सूचना दे रही थी। बेबसी और मुद्रा के बीच फंसा रामानुजन संयम ना रख सका और दुबारा आने की बात कह पीठिका छोड़ दिया।

          हम जिस गली से गुजर रहे थे उस गली में अनेक कोचिंग संस्थान थे। रामानुजम का मूड तो बिल्कुल ही नहीं था कि अब किसी भी संस्थान में बात किया जाए लेकिन मेरे बहुत कहने पर सरस्वती क्लासेज चलने को तैयार हुआ। इस संस्थान में उन दिनों चार नि:शुल्क क्लास दिया जाना था। मुख्य परीक्षा की तैयारी हेतु पटना और इलाहाबाद के एक्सपर्ट बुलाए गए थे। पटना से आए एक्सपर्ट यशवंत मिश्र गणित के स्कॉलर थे। उनके क्लास में रामानुजम ने तो खूब वाहवाही लूटी क्योंकि वह था ही  गणिताचार्य।

          गणित की क्लास के बाद अंग्रेजी का क्लास संचालित हुआ, जिससे इलाहाबाद से आए स्कॉलर अनिल जैन ने कक्षा में प्रवेश किया। जैन सर अंग्रेजी में समझाने का प्रयास कर रहे थे। उन्हें कुछ कैंडिडेट सहयोग भी दे रहे थे। कुछ को समझ में भी आ रहा था लेकिन रामानुजम को उनकी एक भी बात पल्ले नही  पड़ रही थी। अंततः जब ना रह गया तो वह खीझकर बोला,  "सर! आप बीच-बीच में हिंदी भी बोला करें।"
         

          ऐसी बात सुनकर कुछ कैंडिडेट हंस पड़े और रामानुजम झेप गया। क्षण भर की देर किए बिना ही क्लास से बाहर निकल गया।  अंग्रेजी की धुन ने उसके संगीत को फीका बना दिया था। चाहत और कैरियर के बीच अपमान और अहम अपने-अपने पहलू बदल रहे थे।  संगीत के सातों सुरों में वह दर्शन नहीं रहा जिससे रामानुजम कोई धुन अलाप सके। पूर्व निर्धारित सुर भी बेसुरे लग रहे थे। पैरों की गति और हृदय की धड़कन भी एक समान हो चुके थे। उसके अंदर की जिज्ञासा और प्रज्ञा विलुप्त होती जा रही थी। विश्वास और नौकरी, नौकरी और अंग्रेजी, अंग्रेजी और हंसी, हंसी और अपमान जैसे घटकों से आहत होकर रामानुजम ने अब कोचिंग का सहारा लेना अपनी तौहीनी  समझा।  वह उदास, मायूस और बिंब के बीच उलझता हुआ कोई नूतन शिल्प बुनता कोचिंग कैम्पस में मेरा इंतजार करने लगा।
       

         अंग्रेजी का क्लास खत्म हो चुका था। मैं दृश्य और अवर्णनीय बिंबों का रेखा चित्र खींचते हुए उस के समीप पहुंचा और देखा उसकी आंखें भर आई है।  क्षोभ और घृणा उसके चेहरे से टपक रहे हैं। उसके कुछ कहने से पूर्व मैंने कहा-

      लक्ष्य अगर पक्का है बंदे ,
      तो मंजिल तुझसे दूर नहीं है।          
      तुम मंजिल से दूर नहीं है ,
      मंजिल भी तुझसे दूर नहीं है।।

        उसकी भरी आंखें तरंगिणी हो चुकी थी। मौन, बिल्कुल मौन, स्तब्ध, अहवनित और अकल्पनीय सब कुछ उसकी अक्षि बयां कर रही थी। यह घाव  हृदय का गांस था, जहां मरहम का कोई औचित्य नहीं।  मैंने पुन: कहा, " रुचि ही एक ऐसा शब्द है जो शिक्षा की डिक्शनरी में अद्भुत है,  यार रामानुजम!   तुम ही तो कहा करते हो कि रूचि और अभ्यास से सब कुछ पाया जा सकता है। प्लीज डिप्रेस्ड ना हो।  प्राइमरी नॉलेज तुम्हें हम देंगे।" उसने मेरा हाथ पकड़ लिया, जैसे मैं बहुत ही अनुभवी शख्स होऊं।   
           
         अगले सुबह रामानुजम के पास गणित की समस्याएं हल कराने गया तो देखा, उसके रूम का नजारा ही कुछ अलग था!! दरवाजे पर लिखा था, "नो एंट्री विदाउट परमिशन" मुझे शरारत सूझी और "नो" को मिटा दिया, फिर धड़ल्ले से कमरे में घुस गया और देखा तो देखता ही रह गया।  बेचारा हर सामान के डिब्बे और पैकेट पर उस वस्तु का नाम अंग्रेजी में टांक रहा है। अचानक कमरे में मुझे देखकर गर्म मुद्रा में बोला,  "तुम? तुम? तुमने दरवाजे पर लिखी सूचना को नहीं देखा क्या?"

         मैंने मुस्कुराते हुए कहा, "देखा मगर "एंट्री"  और मैं हंस पड़ा। मेरी शरारत देखकर उसे भी हंसी आ गई। उस हिंदुस्तानी युवक को अंग्रेजियत  की जिरह ने व्यथित कर दिया था। उसे अंग्रेजी की सनक सवार थी-- घुड़सवार की तरह--- घोड़े की लत्ती में अंग्रेजी की भांति।  देखा चीनी वाले पर शुगर  टांक दिया है। इसी में उसके हृदय की धड़कन की रफ्तार अंग्रेजी की पीछा कर रही थी,  उसे अंग्रेजी में ही धन उपजाऊ भूमि और विश्वास की तूलिका नजर आ रही थी।
  

         इस बार मुझे हंसी नहीं आई------ उसकी हाथ से डिक्शनरी लिया और जुट गया। उस विवश, लुंज और अंग्रेजी से विकलांग की मदद करने में।

✍   लेखक
       सुरेश सौरभ
       प्रा0वि0 मच्छरमारा,
       शिक्षा क्षेत्र- जमानिया,
       जनपद- गाजीपुर
       उत्तर प्रदेश

📮  संपर्क
       ग्राम -रामपुर फुफुआँव
       पोस्ट -तियरी
       क्षेत्र -जमानिया
       जिला -गाजीपुर
       उत्तर प्रदेश

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