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नारी

नारी

माँ बहन बेटी पत्नी सखा प्रेमिका हो तुम।
साहस त्याग दया ममता समर्थता की प्रतिमूर्ति हो तुम।
प्राणप्रिय संगिनी सहचरी के साथ- साथ सीता सावित्री गायत्री अनुसुईया भी हो तुम।।
हर चुनौतियों को हँस कर स्वागत करने वाली।
असहय पीड़ा को सहने वाली
निर्मल कोमल हृदय लिये।
स्नेह से बने बन्धनों को प्रेम से समेटने की कला हो तुम।
आत्मनिर्भर बन राष्ट्र को शिखर पर पहुचाने वाली सुनीता कल्पना भी हो तुम।।
थोपी गयी मर्यादाओं प्रथाओं विवशताओं को तोड़ आगे बढ़ने की प्रेरणा हो तुम।
नैराश्य जीवन से उबर कर शक्ति का प्रमाण देती रही हो।
वर्जनाओं रूढ़ियों से लड़ते हुए।
संघर्षो में जज्बातों को छिपाते
आँचल में खुशियां लपेटे
अपने मुकामो को सदियों से पाती रही हो तुम।
महिषाशुरमर्दिनी हो दुर्गा हो चण्डी हो।
अपने आत्मविस्वास को बढ़ा कर
आत्मबल से चलती रहो।
बाधाओं को पार कर आगे की ओर बढ़ती रहो।
मत भूलो सम्पूर्ण जगत की जननी हो तुम।।
अपाला हो घोषा हो तुम ही महादेवी।
इंदिरा हो नूरी हो प्रतिभा तुम ही  हो।
बढ़ते भारत की आशा उम्मीद हो।।
 

✍ रचनाकार :
     ममताप्रीति श्रीवास्तव
     स0अ0, प्रा0 वि0 बेईली
     बड़हलगंज,  गोरखपुर

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