पापा की लाडली हूँ मैं
पापा की लाडली हूँ मैं
आँखें खुली तो मुस्कराता चेहरा पाया है।
उँगली पकड़कर जिसने चलना सिखाया है।
उस पापा की लाडली हूँ मै।
जिसके आँगन मे मेरे चलने पर बजती है पैजनिया।
मेरी तुतलाती बोली पर खुश होती है जिसकी दुनिया ।
उस पापा की मान हूँ मै।
भैया के साथ मुझे भी बस्ता मँगवाया है।
उँगली पकड़कर जिसने लिखना सिखाया है।
उस पापा का अभिमान हूँ मै।
कभी घोड़ा बनकर कभी हाथी बनकर सवारी कराया है।
मिट्टी से सने बदन को भी गले से लगाया है।
उस पापा की जान हूँ मै।
मुझे लाड़ प्यार से पाला है।
भैया से पहले मुझे दुलारा है।
पापा की पहचान हूँ मै।
हर कठिनाइयों हर मुश्किलों से लड़ना सिखाया है।
सच्चाई और ईमानदारी पर चलना सिखाया है।।
पापा का अभिमान हूँ मै।
अंधेरे से डर लगने पर सीने से लगाया है।
नीद न आने पर थपकी देकर सुलाया है।।
उस पापा का गौरव हूँ मै।।
कड़कती धूप मे भी शीतल हवाओं का एहसास कराया है।
उदासी के हर दर्द को हँसकर मिटाना सिखाया है।
पापा का वरदान हूँ मै।।
हर असम्भव को सम्भव बनाना सिखाया है।
सुबह की किरण की तरह चमकना सिखाया है।
उस पापा का एहसास हूँ मै।।
किस दिल से आज आपने मुझे डोली मे बिठाया है।
अब आँसू रोक भी न लो पापा,मुझे हर फर्ज निभाना आपने सिखाया है।।
क्योंकि आपकी लाडली हूँ मै।
✍ रचयिता :
ब्रजेश कुमार द्विवेदी
प्र0अ0
प्रा0वि0 हृदयनगर
बलरामपुर
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