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प्रकृति से सीख

प्रकृति से सीख

सूर्य की किरणें निकलकर,
सीख हमको दे रहीं।
गतिमान होकर अनवरत,
बढ़ कुछ तो हमसे कह रहीं।

न है कहीं कुछ भेद इनमें,
कब कहाँ कैसे बढ़ें।
अवरोध रोकें प्रकृति के,
वो बिन रुके बढ़ती रहें।

गगन में कभी मंद चंचल,
बिखेरती अनुपम छटा।
मन मस्त जीवों को लुभा,
नभ को भी रवि संग सदा।

अपनी छटा अनुपम अलौकिक,
अरुण संग विखेरती।
सकून देता दृश्य जब,
सूरज उगे को घेरती।

वो शांत ठंड़क प्रिय सदृश्य,
मन को लुभाती हैं सदा।
रुक कर चलें कुछ पग सीख,
नित साथ सिखलाती कदा।

ये दृश्य होता दिव्य जब,
किरणें हैं उगती दिख रहीं।
अम्बर के रंगों की छटा ज्यों,
एकत्र होकर कह रही।

उठ जाग अब भी वक्त हैं,
मत जाने दे इसको समझ।
कुछ देर करदी गर नहीं मिल,
पाये दिव्य ये दृश्य सहज।

✍  रचियता :
      श्रीमती नैमिष शर्मा 
      स.अ. 
      पूर्व माध्यमिक विद्यालय- तेहरा 
      विकास खण्ड- मथुरा 
      जिला- मथुरा

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