गंगा की व्यथा
पतित पावनी ये माँ गंगा ,
चलो जाने दुःखी क्यों है ?
दुःखी चेहरे पे ये आँसू,
अविरल बहते क्यों हैं ?
भरे मन से कहा माँ ने,
न ही जानो कि क्या है दुखड़ा ।
मै बेहद खूबसूरत थी ,
दमकता था मेरा चेहरा ।
चलो जाने दुःखी क्यों है ?
दुःखी चेहरे पे ये आँसू,
अविरल बहते क्यों हैं ?
भरे मन से कहा माँ ने,
न ही जानो कि क्या है दुखड़ा ।
मै बेहद खूबसूरत थी ,
दमकता था मेरा चेहरा ।
मेरे ही जल से धरती में ,
तरे कितने मनीषी हैं ।
मेरे जल से ही पूजापाठ को,
करते अनेक मुनि ऋषि हैं ।
तरे कितने मनीषी हैं ।
मेरे जल से ही पूजापाठ को,
करते अनेक मुनि ऋषि हैं ।
मेरी संतान ने मुझ पर ,
स्वयं तेजाब डाला है ।
सड़ा कूड़ा या कचरा हो ,
या बहता गंदा नाला हो ।
स्वयं तेजाब डाला है ।
सड़ा कूड़ा या कचरा हो ,
या बहता गंदा नाला हो ।
सभी ने मेरे ही तन पर ,
स्वयं लाकर उड़ेला है ।
बचाऊं अब धरा कैसे ,
जो मुझ में कूड़ा धकेला है ?
स्वयं लाकर उड़ेला है ।
बचाऊं अब धरा कैसे ,
जो मुझ में कूड़ा धकेला है ?
अगर मुझको बचाना है ,
पतित पावन बनाना है ।
अगर बिगड़ी बनाना है ,
ललक मन में जगाना है ।
पतित पावन बनाना है ।
अगर बिगड़ी बनाना है ,
ललक मन में जगाना है ।
करो संकल्प !अब तुम सब ,
कोई कचरा न डालोगे ।
तरासोगे मेरे तन को ,
मेरे जल को निखारोगे ।
कोई कचरा न डालोगे ।
तरासोगे मेरे तन को ,
मेरे जल को निखारोगे ।
मुझे सुन्दर बनाओगे ,
धरा को सब बचाओगे ।
मेरे जल के प्रदूषण को ,
सभी मिल कर हटाओगे ।
धरा को सब बचाओगे ।
मेरे जल के प्रदूषण को ,
सभी मिल कर हटाओगे ।
भगीरथ न सही लेकिन ,
करम कुछ नेक कर जाओ ।
सुसज्जित फिर करो मुझको ,
नया परिधान पहनाओ ।
करम कुछ नेक कर जाओ ।
सुसज्जित फिर करो मुझको ,
नया परिधान पहनाओ ।
अपना स्वार्थ किनारे रख ,
मेरी इस दशा को सुधारो ।
तभी मेरी ये व्याकुलता ,
समाप्त होगी मेरे प्यारों ।
मेरी इस दशा को सुधारो ।
तभी मेरी ये व्याकुलता ,
समाप्त होगी मेरे प्यारों ।
पतित पावनी ओ !माँ गंगे ,
सभी संकल्प लेते है ।
प्रदूषण मुक्त हो गंगा ,
प्रयास सबका यही होगा |
सभी संकल्प लेते है ।
प्रदूषण मुक्त हो गंगा ,
प्रयास सबका यही होगा |
रचयिता
नीलम भदौरिया
प्रधानाध्यापक
प्राथमिक विद्यालय पहरवापुर,
मलवां, फतेहपुर, उ0प्र0
नीलम भदौरिया
प्रधानाध्यापक
प्राथमिक विद्यालय पहरवापुर,
मलवां, फतेहपुर, उ0प्र0
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