माँ
सागर हो प्रेम का माँ ,
तुलना नही तुम्हारी ।
ममता की मूर्ति हो माँ,
ममता तुम्हारी न्यारी।
मुश्किलों की तपिश में,
आँचल की छाँव देती ।
सुख नींद हमको देकर ,
खुद कण्टकों में सोती ।
करती है कामना तू ,
संतान की हो शोहरत।
संतान की खुशी को,
मानती है अपनी दौलत।
संतान कैसी भी हो ,
दुर्भावना न रखती।
समदर्शिता तुम्हारी ,
सबमें सदा ही रहती।
माँ चाह कर भी दिल से,
निर्मोही न हो पाये ।
खुशियाँ करे न्यौछावर,
कोई जान दुःख न पाये।
स्तम्भों का चँदोवा बन ,
थामे सभी को रहती ।
रेशम की डोर में माँ ,
सबको पिरोए रखती।
दुःख है कि मातृशक्ति,
अब लगती हमे परायी,
अब मेरी माँ में मुझको,
दिखती बहुत बुराई।
हम भूल गये हैं बात हमारी ,
एक दिन आयेगी अपनी भी बारी ।
बोया जो मिर्च हमने ,
फल मीठे कैसे पायें।
अभी लाल जो हमारे ,
होंगे वही पराये ।
देखा जो है उन्होने,
वो सीख बन के आये।
उस वक्त सोचना भी,
हमारा है बेकार।
जब वक्त तंग हो तो,
काम न हो पाये साकार।
रचयिता
नीलम भदौरिया
प्रधानाध्यापिका
प्राथमिक विद्यालय पहरवापुर,
मलवां, फतेहपुर, उ0प्र0
नीलम भदौरिया
प्रधानाध्यापिका
प्राथमिक विद्यालय पहरवापुर,
मलवां, फतेहपुर, उ0प्र0
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