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प्यारी माँ

 कितना प्यारा शब्द है माँ
अपने बच्चे के लिए परमात्मा
अहसास करो रुह तक
अहसास करो मंदिर की घंटियो में
शंख की नाद में
मस्जिद के स्वर अल्लाह में
गायों के रंभाने में
बछ्ड़ों को बुलाने में
घोड़े के हिनहिनाने में
कोयल की कूक में
         रुह तक यह अहसास उतरे है
           शायद इस शब्द की व्याख्या परे है
            सागर की गहराई में
             आकाश की ऊँचाई में
           दूर क्षितिज तक जाने में
            बादल के सिमट आने में
माँ मे ईश्वर का नूर समाया है
जो बन जाती है केयर टेकर
बेटे के लिए कर देती
तन मन न्यौछावर
            वह केवल जान पाता है मां का प्यार
            वह असीम प्यार
             व्याख्या रहित
            अहसास रचित
  माँ होती ही है ऐसी
कठिन पगडंडी पर चलना सिखाती
काँंटो भरी राह में
खुशबूदार फूल बन जाती
हर पल विश्वास जगाती
सारा प्यार उड़ेल जाती
             जो सब कुछ देती
             कुछ भी न लेती
बस एक ही ऐसी माँ 
          बडे खुशनसीब होते हैं वो लोग
           जिनके पास माँ होती है
           वो प्यार जो परमात्मा का प्यार
          कोई नही दे सकता माँ देती है
अनाथ हो जाते है वो लोग
जिनकी माँ दूर चली जाती है
खुशियाँ छिन जाती है उनकी
जीने की कला खो जाती है
बन जाती है आकाश का तारा
फिर नही आती लौटकर दुबारा

सब कुछ लुट जाता
जो खो जाती है माँ 
वीरान हो जाती है जिन्दगी
जिनकी दूर हो जाती माँ
              हमारी माँ, तुम्हारी माँ
            दुलारी माँ, प्यारी माँ
हम सबकी माँ

रचनाकार
सारिका तिवारी, प्र0अ0,
उ0प्रा0वि0 फुलवामऊ,
वि0क्षे0 बहुआ,
जनपद फतेहपुर

      

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