दवा के पैसे नहीं,कलम कहाँ से लाएं
एक हफ्ते बीत चुके थे,उसके पास न कॉपी थी न कलम।जो कलम गुरूजी कलमविहीन बच्चों को देते थे वो वापस गुरूजी के पास आती नहीं थी।इसलिये गुरूजी भी कलमविहीन ही अक्सर होते थे।ऐसे कई बच्चे थे जो बिन कॉपी कलम के आते थे।और पूरे दिन सत्यनारायण बाबा के कथा की तरह गुरूजी को सुनते थे।
इन बच्चों को न होमवर्क पूरा करने का झंझट था न ही घर से नकल लिखकर लाने का।स्कूल में भी टकटकी लगाकर देखने के अतिरिक्त कोई काम न था इनके पास।गुरूजी कॉपी-कलम के साथ आने की विनती करते-करते थक चुके थे।अतः उन्होंने आज ऐसे बच्चों के घर जाने का निश्चय किया।
गुरूजी - " आज आपके दोनों बच्चे पढ़ने क्यों नहीं गए ?"
माँ - " रोज-रोज गुरूजी कलम-कॉपी लाने को बोलते हैं, कलम-कॉपी नहीं है इसलिये बच्चे स्कूल नहीं गए।"
गुरूजी - " आप 5 रूपए की कॉपी और कलम खरीदकर दे क्यों नहीं देतीं,आखिर बिन कॉपी-कलम के बच्चे कैसे पढ़ेंगे ?"
माँ - " तीन दिन से छोटे बच्चे को बुखार है,सरकारी अस्पताल में डॉक्टर चार दिन से नहीं आये हैं,कम्पाउंडर पर्ची पर दवा लिख देते हैं और कहते हैं कि दवा खत्म हो गयी है,बाहर से ले लो।बाहर दवा के ₹ 50 मांगते हैं हमारे पास केवल 10 रूपए हैं, हम दवा कराएं या कॉपी कलम खरीदकर दें ?"
गुरूजी - "अच्छा ठीक है,बच्चों को स्कूल भेजिये,कहाँ हैं बच्चे ?
माँ - " बड़ा वाला खरबूजे में पानी डालने नदी किनारे गया है और छोटा वाला भैंस चराने।"गुरूजी ने सिर पीट लिया,नाहक हमने कॉपी-कलम के साथ आने को कहा,कम से कम आते तो थे दोनों,अब वो भी गायब।
लेखक
सच्चिदानन्द सिंह
प्रधानाध्यापक ,
प्राथमिक विद्यालय मरवटिया ,
प्रधानाध्यापक ,
प्राथमिक विद्यालय मरवटिया ,
विकास क्षेत्र नाथनगर ,
संत कबीर नगर
संत कबीर नगर
bilkul yahi sthiti hai guru ji
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