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माँ मेरी


(एक माँ जिसको समाज की रूढ़िवादी विचारधारा के कारण अपनी अजन्मी बेटी को दफ़नाना पड़ता है , जो कि अभी हॉस्पिटल में ही है , उसकी आँख लग जाती है तो वही अजन्मी बेटी किस प्रकार अपनी माँ के सपने में आकर अपनत्व जताती है....)
माँ........ मेरी......
मैं कितना खुश थी
वो तुम्हारा प्यार जताना
पापा का पल-पल घबराना
भैय्या का मुझको बहलाना
सब कितना अच्छा था ...माँ !
मन पुलकित करता था
वो फूलों की खुशबू
वो दादी का बुकनू
भैय्या की टॉफी को
तुझमें ही चूसना
सब कितना अच्छा था...माँ !
पापा का पास आकर पूछना
तेरे ही भीतर ....
जग को महसूसना
पापा ही तो कहते थे...
परीलोक की रानी होगी
मुझे क्या पता था...माँ !
वह सिर्फ एक कहानी होगी
सब कितना अच्छा था...माँ !
फिर क्या हुआ माँ ?
तुम क्यों पीछे हट गयी ?
मेरे सपनों में...
मिट्टी डालना पड़ा ?
माँ.....
तेरी ममता ने
क्यों दम तोड़ दिया ?
तूने लोगों के कथनों को...
इतना मोल दिया ?
औरों के लिए तूने,
मुझे तोल दिया ?
सब कितना अच्छा था....माँ !
तुम उदास क्यों हो गयी... माँ ?
मैं भी तुम्हारा अंश थी
तुम तो मुझे अपना समझती..माँ !
अपने मन की व्यथा मुझसे कहती
मुझे उठा ले प्रभु !
मैं स्वयं प्रभु से कहती
तुम क्यों इतने दुःख सहती ?
माँ.... तुम क्यों इतने दुःख सहती ?
रचनाकार
प्रतिभा गुप्ता
सहायक अध्यापिका
उच्च प्राथमिक विद्यालय खेमकरनपुर
वि.ख.- विजयीपुर 
जिला -फतेहपुर

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