फँस गये गुरुजी
गुरूजी केले की दुकान पर केले का भाव पूछने लगे । सोमवार फल वितरण का दिन था। ₹60 प्रतिदर्जन सुनकर गुरूजी हिसाब लगाने लगे। 12×5=60,यानि प्रति केला ₹ 5 और शासन द्वारा प्रति बच्चे हेतु फल की उपलब्ध कराई जाने वाली धनराशि ₹4 , विद्यालय में कुल बच्चे 150 अर्थात कुल 150 रूपये का नुकसान।
₹1 ऊपर की आमदनी न पाने वाले गुरूजी के लिये ₹ 150 अपने वेतन से लगाना आसान न था। जेब में हाथ डाल-डाल के वापस खींच ले रहे थे,तब तक केले वाला पूछ बैठा - "गुरूजी ! कौन सा आप अपनी जेब से दे रहे हैं,ये तो सरकारी पैसा है,निकालिये। इतना क्यों डर रहे हैं तभी तो ₹ 18000 पाने वाले क्लर्क भी 40000 पाने वाले गुरूजी लोगों को कंजूस बोलते हैं।"
गुरूजी के स्वाभिमान को चोट लग गयी बोले -"किस क्लर्क से फ्री में काम कराये हो ?"
"फ्री में काम कहाँ होता है गुरूजी, कौन दौड़े पचास बार, इसलिये जब भी काम पड़ता है, दे देते हैं।" - दुकानदार बोला।
"फ्री में काम कहाँ होता है गुरूजी, कौन दौड़े पचास बार, इसलिये जब भी काम पड़ता है, दे देते हैं।" - दुकानदार बोला।
गुरूजी ने फिर प्रश्न किया - "किसी अध्यापक को कभी पैसे दिये हो किसी काम के बदले ?"
"कभी काम ही न पड़ा।" - दुकानदार ने बेपरवाह सा उत्तर दिया।
"कभी काम ही न पड़ा।" - दुकानदार ने बेपरवाह सा उत्तर दिया।
उसे सुनाते हुए गुरूजी बगल की दुकान पर चल दिए - "जब कुछ जानते नहीं तो चुप रहा करो।"
पड़ोस वाले से बोले - "10 दर्जन केले दो।"
वैसे गुरूजी केले पर अभी और विचार करते किन्तु दुकानदार के ताने पर उसे जलाने के लिये बगल से केले ही लिये।
पड़ोस वाले से बोले - "10 दर्जन केले दो।"
वैसे गुरूजी केले पर अभी और विचार करते किन्तु दुकानदार के ताने पर उसे जलाने के लिये बगल से केले ही लिये।
रास्ते में गुरूजी हिसाब लगा रहे थे 120 बच्चों पर ₹120 का नुकसान हो रहा है,यदि हाजिरी 140 लगा दें तो ₹ 20 का नुकसान कम हो जाएगा। आखिरकार गुरूजी स्कूल पहुँचे और 110 उपस्थिति पर 130 लगा दिया। हालाँकि बच्चे 140 आये थे किंतु उनमें 30 वे बच्चे थे जो केवल लंगर में खाने आते थे और 6 वर्ष से कम उम्र के बिना नामांकन वाले थे।
गुरूजी के 120 केले कम पड़ गए और उन्हें गैर नामांकित बच्चों की छंटनी करनी पड़ी। यह स्थिति एक शिक्षक के लिये बड़ी लज्जाजनक होती है, जब उसे बच्चों में भेदभाव करना पड़ता है, चाहें बच्चे नामांकित हों या गैरनामांकित।
छुट्टी के 10 मिनट पहले अचानक खण्ड शिक्षाधिकारी महोदय आ पहुँचे। निरीक्षण में 20 बच्चे अधिक दर्ज पाये गये और उनका 1 दिन का वेतन काट लिया गया।
काश गुरुजी को मिस्त्री, बावर्ची, डॉक्टर बनाने के साथ - साथ ज्योतिष बनाने की भी विभाग ने सोची होती तो वो जान जाते कि आज उन पर गाज गिरने वाली है और शायद बच जाते।
लेखक
सच्चिदानन्द सिंह ,
प्रधानाध्यापक ,
प्राथमिक विद्यालय मरवटिया ,
विकास क्षेत्र नाथनगर ,
संत कबीर नगर
सच्चिदानन्द सिंह ,
प्रधानाध्यापक ,
प्राथमिक विद्यालय मरवटिया ,
विकास क्षेत्र नाथनगर ,
संत कबीर नगर
Real truth
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