मैं शिक्षक हूँ
मैं शिक्षक ! मैं शिक्षक हूँ
कुछ ऐसा करने आयी हूँ
बदल समाज की दृष्टि को
ज्ञान का दीप जलाऊँगी
जो टूट चुकी हैं मन की आस
उस मन में आस जगाऊँगी
हैं धर्म मेरा मैं नित अपने
कर्तव्यों पर अडिग रहूँ
जो कर्म है मेरा उसको मैं
पूर्ण निष्ठा से सम्पन्न करूँ
शिक्षा की एक बहती धारा
प्रवाहित करने मैं आयी हूँ ..।
मैं शिक्षक! मैं शिक्षक हूँ ।
कुछ ऐसा करने आयी हूँ
बदल समाज की दृष्टि को
ज्ञान का दीप जलाऊँगी
जो टूट चुकी हैं मन की आस
उस मन में आस जगाऊँगी
हैं धर्म मेरा मैं नित अपने
कर्तव्यों पर अडिग रहूँ
जो कर्म है मेरा उसको मैं
पूर्ण निष्ठा से सम्पन्न करूँ
शिक्षा की एक बहती धारा
प्रवाहित करने मैं आयी हूँ ..।
मैं शिक्षक! मैं शिक्षक हूँ ।
सारे बन्धन को तोड़ कर
शिक्षा से सबको जोड़ कर
न विचलित कर पाये वेग कोई
मैं ऐसी शिला बनाने आयी हूँ....
शिक्षा से सबको जोड़ कर
न विचलित कर पाये वेग कोई
मैं ऐसी शिला बनाने आयी हूँ....
ऊँचे नीचे , टेढ़े मेढ़े ,
हैं राह बहुत ही विकट मगर
उस राह पर अविरल नित
मैं आगे बढ़ने आयीं हूँ ...।
हैं राह बहुत ही विकट मगर
उस राह पर अविरल नित
मैं आगे बढ़ने आयीं हूँ ...।
परिवेश मिला है सिमटा हुआ
कुछ समस्याओं में उलझा हुआ
उस परिवेश के नौनिहालों को
विकसित करने मैं आयी हूँ ...।
मैं शिक्षक ! मैं शिक्षक हूँ।
कुछ समस्याओं में उलझा हुआ
उस परिवेश के नौनिहालों को
विकसित करने मैं आयी हूँ ...।
मैं शिक्षक ! मैं शिक्षक हूँ।
पथ - प्रदर्शक बन करके
शिक्षा से प्रकाशित करके
मिट्टी के कच्चे घड़े को
ज्ञान में तपाऊँ,
फैला सके जहाँ में उजियारा
ऐसा उसे बनाऊँ,
जो निर्बल, कमजोर, निर्धन असहाय हैं.....
उन्हें गगन का सितारा बनाने आयी हूँ ....।
मैं शिक्षक ! मैं शिक्षक हूँ।
शिक्षा से प्रकाशित करके
मिट्टी के कच्चे घड़े को
ज्ञान में तपाऊँ,
फैला सके जहाँ में उजियारा
ऐसा उसे बनाऊँ,
जो निर्बल, कमजोर, निर्धन असहाय हैं.....
उन्हें गगन का सितारा बनाने आयी हूँ ....।
मैं शिक्षक ! मैं शिक्षक हूँ।
हर निरुतरित प्रश्न का हल
मैं खोज निकालूँ हर क्षण
दुनिया के समस्त कुतर्कों पर
मैं मौन तर्कहीन बन जाऊँ
मैं खोज निकालूँ हर क्षण
दुनिया के समस्त कुतर्कों पर
मैं मौन तर्कहीन बन जाऊँ
बोलूँ न कुछ तीक्ष्ण मैं
बस अपने कर्मों से बोल उठूँ।
निशब्द कंठों में, स्वरों की
लड़िया पिरोने आयी हूँ.....
कोमल-कोमल उन फूलों को
अभिलाषाओं की तीव्र ध्वनि से
उद्देशित करने आयी हूँ.....।
मैं शिक्षक ! मैं शिक्षक हूँ।
बस अपने कर्मों से बोल उठूँ।
निशब्द कंठों में, स्वरों की
लड़िया पिरोने आयी हूँ.....
कोमल-कोमल उन फूलों को
अभिलाषाओं की तीव्र ध्वनि से
उद्देशित करने आयी हूँ.....।
मैं शिक्षक ! मैं शिक्षक हूँ।
बरखा की रिमझिम बूँदों में
तपती गरमी की धूपों में
स्वार्थ से परे परार्थ की ऒर
उन नन्हें दीपक को सृजित सृष्टि
में, जगमगाने आयी हूँ ...
तपती गरमी की धूपों में
स्वार्थ से परे परार्थ की ऒर
उन नन्हें दीपक को सृजित सृष्टि
में, जगमगाने आयी हूँ ...
फिर, दामिनी सी निर्भय होकर
सत्यता को दामन में भरकर
परिश्रम पर वो अडिग रहे
ऐसे स्वच्छ शिष्टाचार भरे
परिवेश को मैं लाऊँ
बदल सारी परिस्थितियों को
ऐसी सरल ज्ञान गंगा बहाऊँ ।
मैं शिक्षक ! मैं शिक्षक हूँ।
सत्यता को दामन में भरकर
परिश्रम पर वो अडिग रहे
ऐसे स्वच्छ शिष्टाचार भरे
परिवेश को मैं लाऊँ
बदल सारी परिस्थितियों को
ऐसी सरल ज्ञान गंगा बहाऊँ ।
मैं शिक्षक ! मैं शिक्षक हूँ।
बाधित न हो मार्ग कही
वो हवा का झोंका बन आयी हूँ
सार्थक शिष्टाचार की ज्योति जलाने आयी हूँ ......
अपनी आन्तरिक शिक्षक अभिलाषा को,
सबको समझाने आयी हूँ ...
मैं जग-जग के हर शिक्षक को
यही बतलाने आयी हूँ
उनको शिक्षक कर्तव्यों की
ये बाते सुनाने आयीं हूँ ...।
मै शिक्षक ! मैं शिक्षक हूँ।
वो हवा का झोंका बन आयी हूँ
सार्थक शिष्टाचार की ज्योति जलाने आयी हूँ ......
अपनी आन्तरिक शिक्षक अभिलाषा को,
सबको समझाने आयी हूँ ...
मैं जग-जग के हर शिक्षक को
यही बतलाने आयी हूँ
उनको शिक्षक कर्तव्यों की
ये बाते सुनाने आयीं हूँ ...।
मै शिक्षक ! मैं शिक्षक हूँ।
रचयिता
दीप्ति राय, स0 अ0प्राथमिक विद्यालय रायगंज
खोराबार, गोरखपुर खोराबार गोरखपुर
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