सौर परिवार
सूरज है सबका मुखिया,
आठ संतानों वाला।
सब इसकी परिक्रमा हैं करते,
ये है बड़ा मतवाला।
बुध है देखो सबसे छोटा ,
पास में इसके रहता है।
इसी वजह से छोटा होकर भी ,
सबसे गर्म ये लगता है।
फिर आता है शुक्र प्यारा ,
टिम टिम करता तारा है।
पर सतह इसकी खूब गरम,
दहकता हुआ अंगारा है।
सबसे पहले आकर फिर भी ,
बाद मे सबके जाता है।
सबके दिल को भाता इतना,
सबसे सुन्दर कहलाता है।
फिर आती है पृथ्वी अपनी,
जीवन सबको देती है।
हवा पानी सब इस पर रहते ,
ये अनोखी कहलाती है।
मंगल करता दंगल देखो,
लाल लाल हो जाता है।
जीवन की कल्पना इस पर करते,
लाल ग्रह कहलाता है।
बृहस्पति है गुरु सबके राजा ,
सबसे बड़े कहलाते हैं ।
दूर बहुत है रहते इतना,
जान न इनको पाते हैं।
नाम शनि है घेरा एक,
चारों ओर है रहता।
वलय नाम है इस कवच का ,
साथ मे हरदम रहता।
बाद मे आते है अरुण वरुण,
कुछ नहीं कह पाते हैं,
अंधेरे मे रहते है ,
नजर नही ये आते हैं।
रचनाकार
अर्चना रानी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मुरीदापुर,
शाहाबाद, हरदोई।
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