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हे शिक्षक !

शिक्षा मनुष्य को महान बनाती है।शास्त्रों में विद्याविहीन पुरुष को पशु समान माना गया है। मानवता शिक्षा का बीजरूप है। यदि शिक्षक का शिल्पकार ईश्वर है तो मानवता का शिल्पकार शिक्षक  है इसलिए शिक्षक  सार्वभौमिक समादृत है। वर्तमान संदर्भ को ग्रहण करती ये कविता मानवता के इस महान शिल्पी को समर्पित है।   
 


              हे शिक्षक  !
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मत हो निराश, कुछ सोच नया, 
दिनकर उगता है ,नित्य -- नया  ,
तंद्रा छोड़ चिंतन की कडियां जोड़ो,
स्वप्रेरणा से आज काल धारा मोड़ो, 
नई लहर है ,मन को फिर झकझोरो ।



मत हो निराश,कुछ सोच नया,  
मत माँग भीख कुछ करो दया ,
तू दहलीज लाँघ पग बढ़ा नया ,
अब मन में सपनों को आने दो ,
मत रोको, नई राह पर जाने दो । 



मानवता का शिल्पकार तू  ,
शिक्षा का आदि पुजारी है  ,
मंजिल तुझको मिल जाएगी ,
नित ज्ञान के दीप जलाता जा ,
मत हो निराश कुछ सोच नया।  


✍️
   प्रदीप तेवतिया एआरपी हिन्दी 
    विकास खण्ड सिम्भावली 
     जनपद  -----  हापुड़  

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