मेरे पिता
पिता केवल शब्द नही था,
था मेरा पूरा संसार।
सुख दुःख धूप छांव,
सबमें जीवन का आधार।।
अकेले ही ढोते थे परिवार की,
उम्मीदों का भार।
कभी न रुकते,
कभी न माने थे वो हार।
गलतियों पर थे सख्त बहुत,
चटकाते थे मार।
फिर बन्द कमरों में,
चुपचाप बहाते थे वो नीर।।
खुद की शर्ट फटे या पैंट था मतलब नही,
मेरे लिये सदा रहता था कपड़ों का अम्बार।
अपनी चप्पल जोड़ गांठ कर चलता था काम,
मुझे दिलाते रहते थे मनपसन्द उपहार।।
बाबा की दवा खत्म होने से पहले,
रख देते थे लाकर।
दादी की सेवा के खातिर,
रख दी थी अपनी नौकरी भी ताक पर।।
मेरे पिता की महिमा बड़ी अनन्त,
इसको न मैं लिख पाऊंगा।
झुका शीश नित करूँ प्रणाम,
शायद एक दिन उन जैसा बन पाऊंगा।।
था मेरा पूरा संसार।
सुख दुःख धूप छांव,
सबमें जीवन का आधार।।
अकेले ही ढोते थे परिवार की,
उम्मीदों का भार।
कभी न रुकते,
कभी न माने थे वो हार।
गलतियों पर थे सख्त बहुत,
चटकाते थे मार।
फिर बन्द कमरों में,
चुपचाप बहाते थे वो नीर।।
खुद की शर्ट फटे या पैंट था मतलब नही,
मेरे लिये सदा रहता था कपड़ों का अम्बार।
अपनी चप्पल जोड़ गांठ कर चलता था काम,
मुझे दिलाते रहते थे मनपसन्द उपहार।।
बाबा की दवा खत्म होने से पहले,
रख देते थे लाकर।
दादी की सेवा के खातिर,
रख दी थी अपनी नौकरी भी ताक पर।।
मेरे पिता की महिमा बड़ी अनन्त,
इसको न मैं लिख पाऊंगा।
झुका शीश नित करूँ प्रणाम,
शायद एक दिन उन जैसा बन पाऊंगा।।
रचयिता
अभिषेक द्विवेदी "खामोश"
प्राथमिक विद्यालय मंनहापुर
सरवनखेड़ा कानपुर देहात।
अभिषेक द्विवेदी "खामोश"
प्राथमिक विद्यालय मंनहापुर
सरवनखेड़ा कानपुर देहात।
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