तपता
कवि जैसी कल्पनाओं से बाहर निकल.
यूँ धूप से बच के, अलक की बूँद सा.
कुछ तप्त-मन में नमी से रीझा हुआ मन.
रे बावरे, तू क्यों उदास है.?
हर तरफ छाँव पर ये घनी आकुल.
गुल्लकें भरता रहा, किलकारियों सा.
पटल पे मन फिर भी अग्नि सी तपन..
रे बावरे, तू क्यों उदास है.?
- सुनील कुमार दुबे
05 फ़रवरी 2015
यूँ धूप से बच के, अलक की बूँद सा.
कुछ तप्त-मन में नमी से रीझा हुआ मन.
रे बावरे, तू क्यों उदास है.?
हर तरफ छाँव पर ये घनी आकुल.
गुल्लकें भरता रहा, किलकारियों सा.
पटल पे मन फिर भी अग्नि सी तपन..
रे बावरे, तू क्यों उदास है.?
- सुनील कुमार दुबे
05 फ़रवरी 2015
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