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फ़िज़ा कह रही है


अरक़ान-फ़ाइलातुन, फ़ऊलुन, फ़ऊलुन, फ़ऊलुन
वज़्न- 2122, 122, 122, 122

नाज़नीं आज खिलकर कँवल हो गई हो।
हमसे मिलकर मुक़म्मल ग़ज़ल हो गई हो।
हाँ जिसे देखकर उम्र सारी गुज़ारी,
ख़्वाब का वो हमारे महल हो गई हो।
नुक़्ताचीनी बड़ी ये किये था ज़माना,
ज़िन्दगी की ज़रूरी बदल हो गई हो।
प्यार मुझसे करो या मुझे मार डालो,
जान मेरी तुम्हीं आजकल हो गई हो।
इश्क़ की बेख़ुदी में मे'रा होश खोया,
आप मेरी हवासो अक़ल हो गई हो।
आज निर्दोष सारी फ़िज़ा कह रही है,
आप मेरा जुनूनो शग़ल हो गई हो।
रचनाकार- निर्दोष दीक्षित।

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