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मैंने पूछा था कभी....

तुम इतनी ख़ूबसूरत क्यूँ हो?
मैंने पूछा था कभी
ज़िन्दगी से।
कुछ न बोली
बस ज़रा सा मुस्कुराई थी
......ज़िन्दगी !
कुछ समझ न पाया था
तब...
सवाल छूट गया था
पीछे,
बहुत पीछे........
मैं निकल आया दूर,
बहुत दूर...
पर सवाल अभी भी है
पूरी तरह मरा नहीं है....
ज़िन्दगी अब मुस्कुराती नहीं
ख़ामोश सी हो गई है....
...अब जवाब..
बोलने लगा है...
पर अब
शायद
सवाल कमज़ोर पड़ गया है
और उसे इंतज़ार नहीं है
जवाब का
वह
दम तोड़ने लगा है।
रचना- निर्दोष दीक्षित

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