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वक़्त की नेमतें

एक दिन यूँ ही अचानक
दरमियाने तन्हाई....
वक़्त की अबूझ इबारतें पढ़ते,
पूछ बैठी वक़्त से
क्यूँ इतने दुश्वार हो?
फूल हो या ख़ार हो...?
उम्र भर तुमको जिया
आख़िर तूने क्या किया?
वक़्त के लबों पर
फ़ैल गई,
एक दिलकश मुस्कराहट
बोला....
सारे रंग सारी ऋतुएँ
ये दिन,  ये महीने और साल
सभी तो मेरे दिए हुए हैं
मैं ही तो देता हूँ तुम्हें
बीते समय की यादों में
तैरते हुए कुछ आंसू 
कुछ मुस्कुराहटें
आहट देता हूँ तुम्हारे ख़्वाबों को
तुम्हारे भविष्य के प्रांगण में
तुम्हारे जीवन का आधार हूँ मैं
तुम्हारी साँसों का हर तार हूँ मैं
अपने प्रश्नो को अब यही विराम दो
मेरे सिवाय तुम्हारा है कौन
अब मैं मौन.... लब ख़ामोश
मेरे वजूद से चिपके लम्हे
जीती रही जिन्हें मैं
आह! पहचान न सकी
कुछ जान न सकी!!
आख़िरकार
वक़्त ने जवाब दे दिया...
वक़्त ही जवाब देता है।

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