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"भाग्य और ईश्वर "

"भाग्य और ईश्वर "

भाग्य औरतों के मत्थे थोपा गया अश्लील रुदन है 
बेटियाँ भाग भरोसे जनी गईं
भाग भरोसे एक बाप के बारह  हुईं
सबने कहा ये बेहया के फूल हैं
 डाढ बन जाएंगी
इनको तेल ,बुकुवा , उबटन की जरूरत नहीं रही
भाग भरोसे बेटियों के  पैरों में जान आई
बेटियां सब  खाती थीं
साग ,भात ,बासी मच्छी , थाली की बची रोटी ,छूटा  दाल का कटोरा, कच्चा ,पक्का सब
बेटियां बाप, भाई कक्का, काकी भी खाती थीं
ये कुल का शाप कही गईं

जिन बेटियों की पीठ पर भाई जन्में
 बड़भागी कहाईं
इनको जरा दुलार मिला
 कभी दूध , घी मिला
 कभी अम्मा के हाथ की ताजी रोटी 
कभी जलेबी का बड़ा छत्ता
बेटियाँ बसवारी की कईन सी बढ़ती रहीं
इनके माथा, होंठ , कान , नाक ,हाथ, पैर से भाग विचारा गया
ऊँचा माथा ,चौड़े हाथ , चपटे पैरों वाली लड़कियाँ अभागी  हुईं
छोटा मत्था ,सुंदर हाथ और छोटे पैरों वाली लड़कियाँ सुभागी हुईं
सुभागी लड़कियों के रिश्ते घर आये
इनके ब्याह के लिए नकारे गए लड़के
ये मान दुलार से ब्याही गईं
जिन घरों में पुत्र जन्में
वहाँ पूत जन्मने वाली बहू
का मान बढ़ा
ये गोल बिंदी सेंदुर की लंबी रेखा सजाए साड़ी गहनों से लदी मर्दों की पसंदीदा औरतों ने
 मर्दों की हर बात मानी 
ये घर की लड़की को दफनाने से खुद दफन हो जाने तक
 होंठो पर मुस्कान सजाए पीती रहीं आसुओं में घुला रक्त
इन घर के पुरुषों की चहेती औरतों ने 
स्वयं का पुरुष हो जाना ही सच माना
जिन अभागी बेटियों के बाप वर खोजते थके
उनके फेरे बेल के पत्ते , केले के तने , नीम के पेड़ से हुये
इनके ब्याह के लिए केवल एक पुरुष चाहिये था
ये भाग भरोसे ब्याही गईं
ये कम सूरत ,कम सीरत ,कम दहेज वाली बहुओं को खाने में पहले दिन  बासी कढ़ी मिली
ब्याह की दूसरी सुबह ये रसोई में थीं
इनकी बनाई दाल में स्वाद न आया ,सब्जी रंगहीन रही और रोटियाँ कभी गोल न बनीं
ये फूँकती रहीं चूल्हे में साँसे
पिघलाती रहीं गर्म रोटी पर  प्रेमिल ख्वाब
इनकी आँखे धुयँ के बादलों संग भाप बनीं
इनकी पीठ पर लाल चिमटों के निशान पड़े
इनकी उंगलियां गर्म तवे पर सुर्ख हुईं
ये मायके की उपेक्षित बेटियाँ  ससुराल की बेशऊर बहू रहीं 
ये बेटा जनने के लिए कई कई बार गिराती रहीं कोख 
ये पुरुष प्रेम के लिए पूजती रहीं बरसों बरस ईंट, पत्थर , शिवाले
इनके देह में अबूझ रोग लगे 
ये बड़ी कम उम्र निकलीं 
कोई स्टोव फटने से 
कोई बच्चा जनने से
कोई कुआँ ,तालाब डूब मरी
किसी  किसी का मरना हमेशा राज रहा
इन लड़कियों के लिए जन्म से मरण तक 
रोया गया भाग्य का रोना 
ये जन्मते ही बोझ समझी गई लड़कियाँ 
पूरी उम्र अभागी रहीं।
भाग्य और ईश्वर औरतों के हिस्से ही अधिक आया 
मर्दों ने चालाकी से  अपने हिस्से सदा पुरुषार्थ रखा।

✍️ 
प्रतिभा राजेन्द्र 
आजमगढ़ प्राथमिक शिक्षिका 

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