गज़ल
गज़ल
छत न दीवार न सहारा हूं।
सबूत क्या दूं मैं तुम्हारा हूं।।
एक की बात हो तो बतलाऊं,
हजारों खंजरों का मारा हूं।।
पोछ कर आंसू मुस्करा के कहा
बात कुछ भी नहीं बस हारा हूं।
कभी मुझको भी सूर्य कहते थे,
अब तो मैं भोर का सितारा हूं।।
वक्त ने कैसे दिन दिखाये शेष,
अपने घर में ही बेसहारा हूं।।
✍️
शेषमणि शर्मा
जमुआ,मेजा, प्रयागराज उ०प्र०
कोई टिप्पणी नहीं