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ये इतिहासों का लेखा है..


अपना खंजर अपने हाथों से
मैंने अपना लहू ही देखा है।
शब्द नही है मिट जाए जो,
ये इतिहासों का लेखा है।--2

टूटे नयनों के ख्वाब कहेंगे,
अखण्ड ज्योति की अग्नि कहेगी,
कभी शिखर तो सागर तल तक,
ये जीवन की रेखा है।
शब्द नही है....

जय और पराजय क्या होता,
ये नीर बहाना क्या होता।
कालप्रहर में समा गए नृप नृपन्श,
को इतिहासों ने आज समेटा है।
शब्द नही है...

मंदिर की जलती लौ थी ये,
लावारिस शव क्यू बना दिया,
शब्दतीर जो ब्रम्ह अस्त्र थे,
उनको पंगु क्यू दिखा दिया।
है कबीर मीरा का वंशज,
जो शरशैया पर लेटा है।
शब्द नही है...

मुझको तोडा तो क्या पाया ,
क्यू राहों को तुमने मोड़ लिया,
विश्वास नही टूटेगा फिर,
जो खुद के मैं को तोड़ दिया,
गुमनाम उसे क्यू समझ लिया,
जो शब्द शहर का बेटा है।
शब्द नही है...


लेखक
प्रभात त्रिपाठी गोरखपुरी

(स0 अ0) पू मा विद्यालय लगुनही गगहा,
गोरखपुर
📱 9795524218

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