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मकर संक्रांति है, ओ त्योहार


चहल-पहल हर ओर बढ़ा
बाजारों में शोर बढ़ा ।
खुशियों की सौगातें लेकर
खट्टी-मिट्ठी यादें लेकर
तरह-तरह  उपहारों संग
भरता जीवन में जो प्यार
मकर संक्रांति है ,ओ त्यौहार।


दौड़ रहे सब लेकर बोरा
चूड़ा-दूध से भरा कटोरा
मम्मी देखो मम्मा आये
झोला-गठरी साथ हैं लाये
चूड़ा, तिलवा, गुड़ ,मिठाई
जिस पर बच्चों का अधिकार
मकर संक्रांति है,ओ त्यौहार ।

सुबह-सुबह करके स्नान
सूर्य उपासना,प्रभु गुणगान
अन्न ग्रहण का रखकर ध्यान
भूखों का करना सम्मान
देकर उनको थोड़ा दान
जिसको कहते परोपकार
मकरसंक्रांति है,ओ त्यौहार ।

देव शिखर ,प्रखर के संग
उड़ा रहा है खूब पतंग
पतंग भी देखो झूम रही है
आसमान को चूम रही है
कभी मुहब्बत,ढेरों प्यार
कभी-कभी होता तकरार
मकर संक्रांति है,ओ त्यौहार ।

चूड़ा ,दही सा हो सम्मान
सम्बन्धो का हो पहचान
गुड़ की भांति हो भाषा बोली
तिल के जैसी हो हमजोली
खिचड़ी सी हो हँसी ठिठोली
प्रेम में हो जीवन उजियार
मकर संक्रांति है,ओ त्योहार ।

खुशियां छायी है चहु ओर
सम्बन्धों  की बधी है डोर
सब अपने अपनो के साथ
कहते है ये दिल की बात
शुभकामना  "अरुण" बधाई
प्यार - खुशी जीवन आधार
मकर संक्रांति है ,ओ त्योहार ।

✍ रचनाकार :
अरुण कुमार यादव
पू 0 मा0 वि0 बरसठी
जनपद : जौनपुर

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