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ज्ञान का दीप

ज्ञान का दीप प्रज्ज्वलित कर,
    तिमिर को मिटा दें।
हमारी उन्नति के मार्ग में जो काँटे हैं,
   उन्हें हम हटा दें।
निरन्तर प्रयत्न के द्वारा,
अपनी प्रज्ञा को प्रखर करें हम।
हर संभव प्रयास करें,
  ताकि अधिक निखर सकें हम।

प्रत्येक दिशा में,
ज्ञान के अलोक का विस्तार हो।
युग परिवर्तन हो जाये,
  एक ऐसा चमत्कार हो।
हमारे आत्मविकास में,
कहीं भी न व्यवधान हो।
चहुँदिस ओजमय ,
गीतों का ही गान हो।


एक नवीन आभा,नवीन किरण,
सर्वस्व प्रतीत हो।
जीवन के प्रत्येक क्षण से,कुछ न कुछ ग्रहण करें,
  बस यही रीति हो।
ज्ञानरूपी प्रकाश की किरणों का,
चहुँदिस संचार हो।
अखण्डता  के सूत्र में बंध जायें सभी,
दूर व्याभिचार हो।
स्वयं के कृत्यों पर,
विहंगम सी डालें दृष्टि,
परिवर्तित करके स्वयं को,
आलोकित कर दें यह सृष्टि।


परिस्थितियों के अनुरूप,
स्वयं को परिवर्तित करें।
एक तेजोमय शक्ति,
एक नवीन ओज अर्जित करें।
प्रत्येक दिशा में,
नवीन विचारधाराओं की व्यापकता हो।
अनैतिकता का ह्रास हो,
  दूर अराजकता हो।
हमारी सफलता हो,
असीम,अनंत और अपार।
इन नेत्रों में सजे स्वप्न,
हो जायें साकार।


                
लेखिका :
✍  आरती साहू
सहायक अध्यापक
प्रा0 वि0 मटिहनियाँ चौधरी
विकास खण्ड-सदर
जनपद- महराजगंज
उत्तर-प्रदेश

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