बाल मन की सीख
जिन्दगी को और भी खूबसूरत बनाओ,
कला है इसे ऐसे कुछ रंगौ से सजाओ ।
जिन्दगी हो प्यारी लम्बी सी जतन अपनाओ,
जहाँ दे लाख ठोकर मुकाम खुद बनाओ ।
समय को ध्यान रखो मत व्यर्थ इसे गवाओ,
माता पिता की सीख को जीवन में अपनाओ।
भावनाओं को समझो, सूझ अपनी बढाओ,
जमाने के बदले बदले रूप पहचान पाओ।
छल और कपट भरे स्वरूप भी जान पाओ,
राग द्वेष भरे व्यवहार और मत बढाओ ।
अपने मान की नाम की विशेषता बढाओ,
स्वाभिमान से रहकरके अपना सम्मान पाओ।
कहीं न कोई और उपयोग करे तुम्हारा,
व्यवहार व व्यक्तित्व को सँभालते ही जाओ।
व्यक्तित्व हो प्रभावी इसे ऐसा तुम बनाओ,
कि कोई जोड़े नाम अपना शान उसकी भी बढाओ।
लालसा हो लोगौ को जुडने की जुडा पाओ,
कुछ बुदधजीवियो को उदाहरण रूप में समझाओ।
अनवरत तुम चलो वह आसा सफर को बनाओ,
सुखद अनुभूतियाँ प्रतिपल पाते ही जाओ।
असर इस जहाँ में कुछ इस तरह करके जाओ,
कि राही भी पूछे हमें उनका पता बताओ।
रचनाकार :
श्रीमती नैमिष शर्मा
सहायक अध्यापक
पूर्व माध्यमिक विद्यालय तेहरा
जनपद- मथुरा
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