रिक्शे वाले पापा
उसकी उम्र कोई 50 के आस पास की होगी ,
शरीर दुबला पतला, रंग सांवला और नाक नक्श
साधारण सा था। उसने अपना नाम दीनू बताया था। पूछने पर पता चला कि घर में एक लड़का
और पत्नी है। लड़का 20 वर्ष का हो गया है ,वह सरकारी अस्पताल के पीछे बनी झोपडी में रहता है। मोहल्ले के सारे बच्चे
वही स्कूल ले जाता था। बेटी के नए स्कूल के लिए हमारे मोहल्ले से कोई वाहन उपलब्ध
नहीं था। सरकारी स्कूल होने से लाने ले जाने की व्यवस्था हमें खुद ही करनी थी। पति
देव शहर से बाहर ड्यूटी करने जाते थे और मुझे स्कूटी चलानी नहीं आती थी ,इसलिए रिक्शे वाले की व्यवस्था करना मजबूरी थी। थोड़ी जांच पड़ताल के बाद
मैंने उसे बिटिया को ले जाने को हाँ कर दी और हिदायत दी कि घर से ले जाकर घर पर ही
छोड़ना होगा।
पहले ही दिन रिक्शा बाले ने घर आकर आवाज
दी तो मैं बिटिया को पुकारते हुए दरवाजे तक आ गयी ।
"रिक्शा कहाँ है " मैंने
पुछा तो पता चला कि सड़क पर खड़ा है ।मेरा मूड ख़राब हो गया ।"तुमसे कहा था घर
तक आना है "
"बहिन जी चार बच्चे और भी हैं थोड़ी दूर तो पैदल चलना
पड़ेगा "वो लापरवाही से बोला
खैर मेरी मजबूरी थी सो मैंने बेटी को
स्कूल भेज दिया पर उसका व्यवहार अच्छा ना लगा।
रिक्शे वाले का व्यवहार हमेशा ही अजीब और लापरवाही भरा रहा। बिना सूचना
दिए छुट्टी मारना ,त्यौहार पर बिना बताये अपने गाँव चले जाना,हर 3 महीने में पैसे बढ़ाने की मांग करना और मना करने
पर दूसरा रिक्शा कर लेने की धमकी देना उसकी आदत में शुमार था। कई बार बिटिया ने भी
उसके शिकायत की कि रिक्शे वाले भैया हमें चिढ़ाते है,बिटिया
के पापा ने डांटा तो उसने खीसें निपोर दी। हमने मोहल्ले के कई रिक्शे वालों से बात
की पर कोई उस स्कूल में बिटिया को ले जाने को तैयार नहीं हुआ। वह भी हमारी मजबूरी
को जानता था इसलिए हमें भरपूर परेशान करता था।
बिटिया को ले जाते हुए उसे 2 वर्ष हो चुके थे इस दौरान कई बार उससे झगड़ा हुआ और अंत में हमें ही समझौता
करना पड़ा। उसके व्यवहार के कारण बिटिया के साथ जाने बाले बाक़ी 3 बच्चे उसके साथ जाना छोड़ चुके थे। बिटिया भी अब कक्षा 8 में आ चुकी थी। उसने कई बार साइकिल दिलाने की जिद की तो उसे साइकिल तो
दिला दी पर साइकिल से स्कूल जाने की अनुमति नहीं दी। मुझे लगता था कि इतने ट्रैफिक
में कही कोई हादसा ना हो जाए ,साथ ही अकेले बेटी भेजने को
मेरा दिल गँवारा ना करता था। मैं सोचती थी की 10th के बाद
बिटिया को स्कूटी दिला दूँगी ।
पिछले कुछ दिनों से मैं काफी परेशान थी बिटिया के साथ
जाने वाली लड़की भी अब साइकिल से जाने लगी थी और अब उसे रिक्शे पर अकेले ही जाना
पड़ता था। उम्र के साथ बिटिया का शारीरिक सौष्ठव भी रफ़्तार पकड़ रहा था। एक माँ होने
के नाते अपनी बेटी के जीवन के सभी पहलुओं पर विचार और चिंता मुझे ही करनी थी।
मैंने यशी के पापा से कई बार अपनी चिंता बताई पर उन्होंने मुझे ही समझा दिया कि
ज्यादा मत सोचा करो, कोई चिंता की बात नहीं है, उसे रिक्शे से जाने दो हालांकि उन्होंने रास्ते में पड़ने बाली दुकानों पर
रिक्शे पर निगाह रखने को कह दिया था ।
बिटिया बड़ी होने के साथ ही मैंने भी
नौकरी ज्वाइन करने का मन बना लिया हालांकि यशी के पापा इसके खिलाफ थे पर बढ़ती
महँगाई और भविष्य की मुश्किलों के मद्देनजर उन्होंने अपनी सहमति दे दी थी । दोनों
लोगों की नौकरी के साथ एक समस्या और खड़ी हो गयी कि हम तीनो का घर से निकलने का समय
अलग अलग हो गया। अब यशी स्कूल जाते समय घर का ताला लगाकर चाभी पड़ोस में देकर जाती
थी। कई बार मुझे बहुत उलझन होती थी पर कामकाजी परिवारों को इन समस्याओं का समाधान
निकलना ही पड़ता है। मेरी नौकरी के कारण घर में भी तनाव बढ़ रहा था । हम तीनो ही
अपनी जिंदगी में व्यस्त थे और मैं अपनी जॉब के कारण बिटिया को समय नहीं दे पा रही
थी जिससे वो कुछ चिढ़चिड़ी हो रही थी।
इस बार बिटिया का जन्मदिन उसके दोस्तों के साथ
मनाया जाना था। जिस दिन जन्मदिन होता था उस दिन स्कूल में नए कपडे पहनकर जा सकते
थे। शाम को बिटिया जब स्कूल से लौटी तो बहुत खुश थी और उसके हाथ में एक बिस्कुट
का पैकेट था। पैकेट देखकर मैं चौंकी क्योंकि अब उसकी उम्र पारले जी खाने की नहीं
थी। मैंने पुछा कि ये किसने दिया तो मुस्करा बोली कि रिक्शे बाले भैया ने दिया है।
मैंने उससे कहा इसे मत खाना तो उसने प्रश्न किया "क्यों इसमें क्या बुराई है ?"
मैं जल्दी में थी और उससे बहस नहीं करना चाहती थी इसलिए चुप रहने
में भलाई समझी पर मेरे मन में कई प्रश्न उठ चुके थे ।
रिक्शे बाले का व्यवहार भी अब पहले से काफी बदल
चुका था। अब वह यशी को घर से लाकर घर ही छोड़ता था । बैठने से पहले अपने अंगौछे से
गद्दी साफ करता। यशी ने भी कई महीनो से उसकी कोई शिकायत नहीं की थी। पैसे बढ़ाने की
जिद भी होनी बंद हो चुकी थी। त्यौहार पर भी नियमित आता रहता था। पर जन्मदिन पर
बिस्कुट के पैकेट देने की बात मेरी समझ में नहीं आ रही थी। मुझे कभी कभी उस पर शक
होने लगता था। मुझे लगता कि ये लोग उस गन्दी बस्ती में रहते है जहाँ अपराध करना आम
बात है इन लोगो पर आसानी से भरोसा नहीं करना चाहिए । पर यशी के पापा उसकी मदद कर
देते और अपने पुराने कपडे भी उसे दे देते थे। त्योहारों पर भी उसे सौ दो सौ रुपये
ज्यादा दे देते ।जब मैं बहस करती तो कहते ,बंद कर दो रिक्शा
खुद ले जाया करो ,और मैं निरुत्तर हो जाती।
आज यशी कुछ परेशान सी घर आई थी ,बताया कि रिक्शे बाले भैया की तबियत बहुत ख़राब है उन्होंने रास्ते में दो
बार रिक्शा रोककर उल्टी की और पूरे दिन स्कूल के बहार ही रिक्शे पर पड़े सोते रहे।
मैंने कहा लू लग गयी होगी। अगले दिन मुझे ऑफिस नहीं जाना था सो यशी का नाश्ता
तैयार करते हुए रिक्शे बाले की आवाज सुनकर चौकी ।बाहर जाकर देखा तो रिक्शा तैयार
खड़ा था ।मैंने पुछा कि तुम्हारी तबियत ख़राब है तो आराम करते ,तो बोला कि फिर मेरी गुड़िया स्कूल कैसे जाती गुड़िया ने मुझे दवा दे दी थी
इसलिए आराम है। मैंने यशी के टिफिन के साथ उसे भी पॉलीथिन में नाश्ता और बुखार की
दवा दे दी।
अब रिक्शे बाला काफी
खुश सा दिखने लगा था अक्सर यशी को छोड़कर वही स्कूल के बाहर इंतज़ार करता रहता था।
एक दिन मैंने उसे टोका कि अब तुम एक ही बच्चा लेकर जाते हो खर्चा कैसे चलता है तो
बोला अब घर में बचा ही कौन है। लड़का आवारा हो कर भाग गया और बीवी छोड़कर चली गयी।
अब दो बक्त की रोटी की जरुरत है सो एक चक्कर शहर में घुमा लेता हूँ और खाने के लिए
पर्याप्त पैसे मिल जाते हैं।
इस वर्ष यशी का बोर्ड क्लास
था ।साइंस और मैथ कुछ कमजोर थी इसलिए ट्यूशन की व्यवस्था करनी पढ़ी। ट्यूशन लाने और
ले जाने के लिए रिक्शा वाला तैयार हो गया ।सुबह 7 बजे से 2
बजे तक स्कूल होता और शाम को 3 से 5 तक ट्यूशन। मैं निश्चिन्त थी यशी भी रिक्शे वाले के साथ परिवार की तरह घुल
मिल गयी थी हालाँकि कई बार मैंने उसे उससे दूर रहने की सलाह दी पर यशी को कोई फर्क
ना पड़ा। ट्यूशन के बाद यशी को बाज़ार कराने की जिम्मेदारी भी उसी की थी ।हालाँकि इस
वर्ष यशी को स्कूटी दिलानी थी पर यशी के बाबा की किडनी फेल हो जाने से लगभग 4
लाख रुपया उनके इलाज़ में लग चुका था और घर की आर्थिक व्यवस्था चरमरा
गयी थी। यशी के पापा भी अब जॉब के साथ बीमा एजेंट का काम करने लगे थे इसलिए रात 8
बजे के बाद ही घर आते थे हम तीनो प्राणी केवल खाना के समय ही इकट्ठे
होते और 1 घंटे बाद अलग अलग हो जाते ।
अचानक एक दिन रिक्शा
वाला गायब हो गया । यशी को शायद पता था इसलिए वो सुबह स्कूल के लिए तैयार नहीं
हुयी थी पर आज काफी परेशान सी थी। खाना भी अच्छे से
नहीं खाया था। मैंने बात करनी चाही तो बिना जबाब दिए अपने कमरे में चली गयी । अगले
दिन यशी ने बताया कि रिक्शे बाले अंकल की तबियत ख़राब है वो एक सप्ताह नहीं आ
पायेगा । यशी अब रिक्शे बाले को भैया ना कहकर अंकल कहने लगी थी। स्कूल जाने के लिए
उसने अपनी सहेली के साथ वैकल्पिक व्यवस्था कर ली थी । हम दोनों अपने अपने कामो में
व्यस्त थे इसलिए इस बात को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया।
यशी रोज की तरह आज सुबह 7
बजे ही घर से निकली थी पर शाम 6 बजे तक वापस
नहीं आई ।मैं भी अपने ऑफिस से 5:30 पर लौटी थी ।चूँकि हमने
यशी को मोबाइल नहीं दिया था, इसलिए मन विचलित हो गया। उसकी
दो तीन सहेलियों को फोन लगाया तो पता चला कि यशी एक सप्ताह से स्कूल और ट्यूशन
नहीं गयी है। मेरे दिमाग ने एकदम काम करना बंद कर गया । दिमाग में अजीब से ख्याल
आने लगे। रोज टीवी पर आने वाली बलात्कार और छेड़छाड़ की घटनाएं सोच कर मन बैठने लगा।
कही किसी के साथ भाग तो नहीं गयी ।कही कोई अनहोनी तो नहीं हो गयी । आखिर स्कूल
नहीं जाती थी तो जाती कहाँ थी ?। कही रिक्शे बाले ने
.................। समझ में नहीं आ रहा था क्या करूँ। मैंने तुरंत फोन कर यशी के
पापा को घर बुलाया। यशी के पापा को भी कोई उपाय समझ में नहीं आ रहा था। पड़ोसियों
को बताना उचित नहीं लगा ।पुलिस को इतनी जल्दी सूचित करना भी ठीक नहीं लग रहा था।
हमारा दिल डर से बैठा जा रहा था।
मैंने कहा रिक्शे वाले को खोजो
शायद उससे कुछ पता चले। तो यशी के पापा तुरन्त बाइक लेकर उसे खोजने चले गए इधर
मैंने उसके कमरे के सामान को खोजना शुरू किया उम्मीद थी शायद कुछ ऐसा मिले जिससे
उसका पता चल सके पर निराशा ही हाँथ लगी । यशी के पापा ने आकर बताया कि रिक्शा वाला
एक हफ्ते से घर पर नहीं है और मोहल्ले में किसी को कुछ पता नहीं है, हाँ ये जरूर पता चला है कुछ दिन पहले कुछ लड़के आकर उसको बुरी तरह पीट गए
थे तभी से वो गायब है । हम निराश हो चुके थे मेरा शक तो रिक्शे वाले पर ही था मुझे
लग रहा था कि उसी ने कोई गलत हरकत की होगी यशी के साथ। मैं रोने लगी तो यशी के
पापा ने ढाढ़स बधाया। रात के 9 बज चुके थे कुछ भी सूझ नहीं
रहा था यशी के पापा ने अपने मित्रो को घटना की जानकारी देना शुरू कर दी थी। अब तो
सुबह का इंतज़ार था कि सुबह हो और हम पुलिस की सहायता लें।
मेरा मन जब कुछ स्थिर
हुआ तो मैंने यशी के पापा से पूछा कि उसने आपको कुछ बताया था कभी किसी लड़के आदि के
बारे में तो उन्होंने कहा नहीं ऐसी कोई बात नहीं बताई उसने पर 4 दिन पहले कंप्यूटर कोर्स की फीस भरने के लिए उसने 10 हजार रुपये लिए थे मुझसे। मैंने दौड़कर अपने सारे गहने देखे सब सुरक्षित
थे।पूरी रात चिंता और डर में बैठे हुए गुजरी। हम सुबह का इंतज़ार कर रहे थे ।
सुबह होने पर इनके सारे
दोस्त इकट्ठे हो चुके थे रिपोर्ट करने से पहले एक बार फिर अपने स्तर से खोजबीन
करने की सहमति हुयी और सभी लोग यशी को खोजने निकल पड़े। सारे समाचार पत्र भी देख
लिए गए। टीवी पर भी समाचार अपडेट पर निगाह लगी थी। दोपहर तक कुछ पता ना चला ।अचानक
याद आया कि कुछ दिन पहले अखबार में एक न्यूज़ आई थी कि किसी रिक्शे वाले ने बाज़ार
में लड़की को छेड़ने बाले लड़कों को दौड़ा लिया था। मैंने दौड़कर अख़बार निकाला पर उसमे
रिक्शे वाले का नाम पता नहीं था पर मैं इस घटना को यशी से जोड़ने की कोशिश करने लगी
याद आया कि यशी के पापा ने रात में बताया था कि यशी के रिक्शे वाले को कुछ लड़कों ने
पीटा था तो क्या ये वही रिक्शे वाला था ?जिसने बाजार में
लड़की छेड़ने बालों को दौड़ाया था। तो क्या वो लड़की यशी थी? कुछ
समझ में नहीं आ रहा था। क्या रिक्शे वाला यशी को पसंद करता था ? ऐसा कैसे हो सकता है उसकी उम्र तो बहुत थी। आखिर यशी है कहाँ ? रिक्शे वाले के गायब होने से सारा शक उसी पर था यशी को खोजने के लिए उसका
मिलना जरुरी था। मैंने यशी के पापा को फोन करके कहा कि आप उस रिक्शे वाले की
रिपोर्ट दर्ज़ करा दो मुझे लगता है उसी ने यशी का अपहरण किया है।
पूरा दिन गुजर गया यशी
का कोई पता नहीं चला। सारे रिश्तेदार भी आ चुके थे लोग तरह तरह की बातें कर रहे थे
,कोई कह रहा था भाग गयी होगी ,किसी का मानना
था कि पैसे के लालच में अपहरण हुआ होगा। यशी के पापा ने सामाजिक बदनामी के डर से
अभी तक रिपोर्ट नहीं की थी। हम सब बस इंतज़ार कर रहे थे कि यशी के सकुशल होने की
कोई खबर मिले। एक रात और जागते हुए कटी ।
सुबह 6 बजे ही न्यूज़ पेपर
आ गया खबर पढ़ते ही हमारे आँखों में आंसू झलक गए मैं निःशब्द हो चुकी थी दिमाग जड़
हो गया था। न्यूज़ में लिखा था एक साहसिक लड़की ने अपनी रक्षा करने बाले रिक्शे वाले
का पुत्री बन किया अंतिम संस्कार। ये भी लिखा था लड़की
की रक्षा करने पर लड़कों ने रिक्शे वाले को बुरी तरह पीटा था जिससे उसकी हालात
गंभीर थी और इस बहादुर लड़की ने उसका भरपूर इलाज़ कराया था पर उसे बचाया ना जा सका।
मेरे दिमाग में बस एक ही प्रश्न था कि आखिर यशी ने ये सब हमसे छुपाया क्यों?
पर शायद उसका कारण भी मैं ही थी जिसनें पिछले कई वर्षो से नौकरी के
कारण बेटी को समय नहीं दिया था और हम पति पत्नी के
सम्बन्ध भी मधुर नहीं थे। रिक्शे वाले को लेकर मैं उसे हमेशा डाँटती ही रहती थी
।मुझे लगता था कि ऐसे लोगो की मानसिकता अच्छी नहीं होती है इनकी गन्दी सोच से
बच्चों को दूर रखना चाहिए। पर आज पता चला कि हम कितने संकुचित विचारों के थे।
रिक्शे बाले भैया ने रिक्शे वाले अंकल बनकर हमारी इज्जत को बचाने के लिए अपनी जान
दे दी और यशी ने पुत्री बनकर उनका क़र्ज़ चुकता किया। 10 बजे
यशी घर आ गयी थी किसी ने उससे कोई प्रश्न नहीं किया था। पर मैंने सर झुकाकर केवल
इतना बोला कि आई ऍम सॉरी बेटा।
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