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वर्षा ऋतु आयी

वर्षा मनभावन ऋतु है। साहित्य में बहुधा इसका वर्णन श्रृंगार रस के परिप्रेक्ष्य में किया जाता है ।यथार्थ के धरातल पर नगरीय जीवन में परम्परा से हटकर जुगुप्सा का उद्दीपन करता और नगरीय विकास के वर्तमान स्वरूप को कठघरे में खड़ा करता एक  वर्षा -चित्र देखिए।

वर्षा मनभावन ऋतु है ।साहित्य में बहुधा इसका वर्णन श्रृंगार रस के परिप्रेक्ष्य में किया जाता है ।यथार्थ के धरातल पर नगरीय जीवन में परम्परा से हटकर जुगुप्सा का उद्दीपन करता और नगरीय विकास के वर्तमान स्वरूप को कठघरे में खड़ा करता एक  वर्षा -चित्र देखिए।

 

   वर्षा ऋतु आयी
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देखो कैसी वर्षा ऋतु आयी ,
तन -मन काँपे ,आँखे पथराई ,
माटी की सौंधी महक नहीं ,
उठती है केवल गंध तिक्त ,
होता बादल से मन विरक्त ।

देखो कैसी वर्षा ऋतु आयी ,
शहर के उफनाते है सीवर ,
खुले गए मैनहाॅल के विवर ,
नाली का पानी रोक रहे हैं ,
कूड़ा -कचरा और चीवर ।

सड़कें दिखती ताल - रूप ,
बिजली के खंभे काल - रूप ,
घर की दहलीज को कर पार ,
अंदर आया मल - मूत्र ज्वार ,
ठिठके कोनो में हो निरुपाय ।

देख गन्दगी का अम्बार ,
मन में प्रश्नो की बौछार ,
लगा सोचने यही विचार ,
जाने को  गली के पार ,
पहनूं जूते या दूँ  उतार  ।

सब ओर है पंकिल जाल ,
फैल गई गन्दगी विकराल ,
बहकर आते मूषक -व्याल ,
सभी मोहल्ले , गली - गली ,
कूड़े -कचरे की है रेल चली ।

शहर का दृश्य बड़ा अभिराम ,
एक पल करता नहीं विश्राम ,
बनकर विकास का विद्रूप ,
दौड़ लगाता है  मानव ,
करता पानी में छप - छप ।

 
✍ रचनाकार : 
     प्रदीप तेवतिया
     हिन्दी सहसमन्वयक
     वि0ख0 - सिम्भावली,
     जनपद - हापुड़
     सम्पर्क : 8859850623


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