पितृदेव
“पितृदेव”
ये पितृपक्ष पुनीत अब,
सब आप आ पधारिये।
देव तुल्य बन गऐ आप,
अपनी संतति सँवारिऐ।
मैं हूँ बहुत चिंतित कि अब,
तुम दृश्य नहीं है हो रहे।
शक्ति कृपा अपनी हमें,
अदृश्य ही देते जाईऐ।
ये दिवास्वप्न सा जग यहाँ,
सब तरफ भागम भाग हैं।
कर रहे हैं अपने कर्म को,
पृथ्वी पर भी देख जाईऐ।
मेरी अनेकों भूल को तुम,
ध्यान में रखना नहीं।
जो प्यार बालकपन दिया,
कम करके न विखराईऐ।
उत्कर्ष कर आगे बढ़ें,
हमें राह भी दिखलाईऐ।
अवरोध सारे दूर हों,
आशीष देते जाईऐ।
यहाँ वक्त व्यक्ति बदलते,
पल में सहज असहज ल़गे।
सिखलाया जो व्यवहार,
अब परिणाम देख जाईऐ।
✍ रचियता-
श्रीमती नैमिष शर्मा
(स.अ.)
पू० मा० विद्यालय-तेहरा
विकास खण्ड- मथुरा
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