शिक्षक महिमा
“शिक्षक महिमा”
1
शिष्य भी थे अब शिक्षक हैं, उन गुरुओं का सम्मान करें।
पाया हैं ज्ञान जिनसे हमने, अब शिष्यों को हम दान करें।।
2
महिमा रोमों में बह कहती, हर शब्द में शिक्षा की लहरें।
मस्तिष्क तरंगों से मिलकर, बहे ज्ञान कहाँ कैसे ठहरें।।
3
प्रतिभाऐं कहाँ छुपी बैठी, शिक्षक ही ढूंढ निकालते हैं।
निर्वहन कर कर्तव्यों का, देश का भविष्य सँभालते हैं।।
4
ठहराव बुद्धि मन चिंतन का, शिक्षक बतलाया करते हैं।
जिनके जीवन सद्गुरु नहीं, वो निंदा पाया करते हैं।।
5
शिक्षक में भाव अति वात्सल्य के, भरे हुऐ से दिखते हैं।
कटु बोलें या मृदु बचन कहें, शिष्यों का हित ही करते हैं।।
6
इंसान को इंसान शिक्षक, ज्ञान देकर बनाते हैं।
व्यवहार जीवन के सिखाकर, सम्मान भी दिलाते हैं।।
7
मात-पिता ऊँगली पकड़कर, चलना हमें सिखाते हैं।
गिरने के बाद सँभलें कैसे, शिक्षा “शिक्षक” सिखलाते हैं।।
रचनाकार-
श्री मती नैमिष शर्मा (स.अ.)
पूर्व माध्यमिक विद्यालय- तेहरा
विकास खण्ड- मथुरा
जनपद : मथुरा
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