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दिखे चंद सिक्के


दिखे चंद सिक्के


किसे आदमी से मुहब्बत हुई है
दिखे चंद सिक्के सियासत हुई है

किया शर्म जिसने बिका है वही तो
खरीदी इबारत हक़ीकत हुई है

बड़े जोश में निकल हम भी दिए अब
मगर राह मुश्किल ज़हानत हुई है

रहा कौन साथी गरीबी में यहाँ
जहाँ देखिये बस इनायत हुई है

बहुत मुश्किलों से समेटा घरौंदा
मगर जान  आफत मसाफ़त हुई है



✍   लेखिका :
निरुपमा मिश्रा
शिक्षिका
जनपद : बाराबंकी

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