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"शिक्षा बने हनुमानी मशाल"

जब शिक्षा केवल पुस्तकों तक सीमित हो जाए, तो वह विचार नहीं देती—सिर्फ सूचनाएँ देती है। मगर जब शिक्षक स्वयं प्रेरणा बन जाएँ, तब कक्षा बन जाती है कर्मभूमि और शिक्षा बन जाती है संजीवनी। ऐसे ही शिक्षा के आदर्श रूप की कल्पना हम करते हैं हनुमान जी के व्यक्तित्व में—जहाँ समर्पण है, साहस है, विनय है, और एक शिक्षक भाव भी है।


प्रस्तुत है एक कविता, जो शिक्षकों को जगाने आई है—कि वह न केवल पढ़ाएँ, बल्कि बाल-हनुमानों को गढ़ें।

हनुमान जी को अक्सर केवल बल और भक्ति का प्रतीक माना जाता है, लेकिन उनका जीवन एक आदर्श शिक्षक की भूमिका का भी प्रतिबिंब है। उन्होंने गुरु से सीखा, अपने ज्ञान का उपयोग सेवा में किया, और स्वयं को हमेशा विनम्र रखा।

यह कविता "शिक्षा बने हनुमानी मशाल" न सिर्फ शिक्षकों को प्रेरित करती है, बल्कि उन्हें यह याद दिलाती है कि उनकी भूमिका किसी संजीवनी लाने वाले वीर से कम नहीं। हर शिक्षक के भीतर एक हनुमान छिपा है—जो अगर जागे, तो शिक्षा एक आंदोलन बन सकती है।


"शिक्षा बने हनुमानी मशाल"

हनुमान न केवल बलशाली, हैं आदर्श शिष्य महान,
सेवा, भक्ति, सच्चा समर्पण, जिनसे चमके हिंदुस्तान।
सूरज को गुरु कर जो सीखा, वह ना भूले मर्यादा,
शिक्षक बनें वही मशालें, जो दें बच्चों को सच्चा वादा।

ना केवल पर्वत उठाना, उनका है साहस की बात,
बल से बढ़कर बुद्धि हो जिनमें, वो शिक्षक बनें दिन-रात।
हर बच्चा बन जाए ताज़ा, संजीवनी विचारों से,
ज्ञान-सिंचन की शक्ति भरें, अपने पावन उद्धारों से।

न रहे कक्षा सिर्फ पाठ की, बने कर्म की कर्मभूमि,
जहाँ हर शब्द हो प्रेरणा, और हर सीख हो जनभूमि।
शिक्षक वही जो सीखा दे—झुककर जीता जाता है,
हनुमान की छाया में ही, जीवन लक्ष्य पाता है।

जो स्वयं लघु बन जाता है, वही बंधन को तोड़ेगा,
जो सबमें राम रूप देखे, वही भविष्य मोड़ेगा।
उठो शिक्षकों! हनुमान बनो, हर कक्षा हो रणभूमि अब,
जहाँ न हो केवल रटना, हो सच्चे जीवन का अभ्यास सब।


✍️  रचनाकार : प्रवीण त्रिवेदी 

शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर, आजकल बात कहने के लिए साहित्य उनका नया हथियार बना हुआ है। 


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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