“राम के रस्ते पर आज कौन चले?”
“राम के रस्ते पर आज कौन चले?”
(जब आदर्शों को भोग के बाजार में नीलाम किया जा रहा हो, जब धर्म का अर्थ सुविधा बन जाए, और कर्तव्य बोझ— तब “राम के रस्ते पर आज कौन चले?” जैसे सवाल ललकार बनकर खड़े होते हैं।)
मर्यादा की बात करे जो, भीड़ में ऐसे कौन जले?
सच की राहें आज बनी हैं, अंगारे हैं, कौन चले?
सुख की खातिर हर कोई अब त्याग-धर्म से दूर ढले,
राम कहें – “कर्तव्य ही जीवन”, उनके जैसा कौन चले?
लाभ-हानि के तराज़ू में बंट गया हर इक उजियारा,
दीपक बनकर तप जाए जो, उस अँधेरे में कौन जले?
स्वार्थ की भाषा बोल रहा है, हर संबंध, हर इक दिल,
राम की भाषा, प्रेम-संयम – उस बोली में कौन पले?
राम न हो सकते फ़ैशन, वो तो चेतन का आलोक,
आज भी वो प्रश्न बने हैं – “धर्म पथ पर कौन चले?”
✍️ रचनाकार : प्रवीण त्रिवेदी "दुनाली फतेहपुरी"
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर, आजकल बात कहने के लिए साहित्य उनका नया हथियार बना हुआ है।
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
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