क्षणिकाएँ
क्षणिकाएँ
समाज की चेतना
पहले स्त्रियां सस्ती हुईं
जब आवाज़ उठाई
तो ईर्ष्या ध्वनित होने लगी।
स्त्री की अस्मिता कुचलने वाले नंगे हुए
तो बलत्कृत स्त्रियों की जली लाशें मिलीं।
उसके बाद इन्साफ मरा
फिर स्त्रियां मरीं।
हाय! सबसे अंतिम में
समाज की चेतना मरी।
औरत
औरत की व्याख्या की,
औरत पर तर्क भी किया फिर
औरत से प्रेम करके
उसकी समस्या और बढ़ा दी।
अब ये कौन से लोग हैं?
जो आज़ादी का मतलब
औरत से पूछ रहे हैं!
यहां उसे बस थोड़ी-सी 'छूट'
मिलती है।
मछली
औरत किसी भी रूप में हो
होती है- एक मछली
जाल में फँसना ही पड़ता है
कभी किसी की भूख मिटाने
तो कभी किसी घर की शोभा बढ़ाने।
मैं एक्वेरियम की मछली हूँ
जिसे सब कुछ दिया गया
सिवा पानी के...
परिणाम
पूर्ण होने के परिणाम देखिये...
आत्मा देह त्यागती है
जब उम्र पूरी हो जाती है
जैसे बातें साँसे होती हैं रिश्तों में
जो पूरी न हो तो ठीक
एकदम न हो तो मृत समझो- रिश्ता
पुरुषत्व
बेटी 'माँ' तो बन जाती है
लेकिन तब भी 'पिता' होना नहीं जान पाती..
बेटी और पिता के बीच
पुरुषत्व की खाई होती है..
पृथ्वी पर भूमि के हिस्से जितना
फैला है पुरुषत्व..
हे ईश्वर!
हर पुरुष बेटी का पिता बने
और पुरुषत्व भूल जाय..
✍️
~ तान्या सिंह
प्रा.वि. तेनुअन पिपरौली
गोरखपुर
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