सत्य ने कहां छोड़ा
सत्य ने कहां छोड़ा
सुनो तो एक बार
हृदय की मंद ध्वनियों में
सत्य ने कहां छोड़ा तुमको,,!
वो आज भी बंद है
तुम्हारे मन के भीतर
तुम ही उसे रोकते हो
सबके समक्ष आने से,,।
सत्य रूपी आकाश की कोई छाया नहीं ,,,,,
परंतु सत्य सभी मृदु हृदय के विश्वास का स्वर साधक है
सत्य ना तो भव्य है ,,,
और ना ही अदृश्य,,,
हर क्षण हर मौसम में सभी को चुनौती देता हुआ सर्वज्ञ व्याप्त है। पूर्व काल से ही हर किताब
हर लेख में , ,,सत्य
अपराजित है।
सत्य कठिन बेला में ,,
परेशा होता है ।
किंतु झूठ के समक्ष पराजित नहीं फिर भी कई बार,, झूठ में
मिलते देखा है सत्य ,,,!
रद्दी कागजों के जैसे
बिकता है सत्य ,,,!
बेबसी की चादर लपेटे कोने में हाफता हुआ अपनी मजबूरियों पर कहारता है सत्य ,,,।
सत्य ने कहां छोड़ा तुमको,,!
तुम खुद ही छोड़ देते हो उसे
हर मोड़ पर चित्कार
करता है सत्य ,,!
सत्य से बड़ा नहीं कोई ,,मगर
तुच्छ भोगविलास में परित्याग
कर दिया जाता है सत्य,,,
अंदर से घुटता हुआ
एक नग्न अवस्था में अपमानित सा महसूस करता है सत्य ,,,
परंतु सत्य ने कहां छोड़ा तुमको,! सत्य को देख सको तो ,,,
सत्य वो रमणीक सौंदर्य है जिसकी महत्ता को
सब नहीं देख पाते ।
वास्तव में सत्य
सरल ,सौम्य और कोमल है
पर शायद ,,सत्य की डगर
कठिन है ,,,इस के सफर में
झूठ ,धोखा और कांटों का ही बसर है ,,,,,फिर भी जो ,,
सत्य के कठिन स्वरूप को अपनाता है
मुश्किलों में एक बार भी
नहीं घबराता है ,।
वही तो सार्थक जीवन का
सारथी कहलाता है ।
इसीलिए तो ,,,,,
सत्य ने कहां छोड़ा तुमको ,,!
तुम ही डगमगाते हो सत्य से,, विलीन कर देते हो सत्य को
सत्य में पड़ने वाली ,,,
विपत्तियों से विचलित हो ,
झूठ के आगोश में चले जाते हो,,, तो कहां छोड़ा सत्य ने तुम्हें,,!
तुम ही अपने और अपनों के लिए,,, सत्य को छोड़ जाते हो,,,।
सत्य तो तुम्हारे लिए,,, तुम्हारे हृदय का आलिंगन कर
सदैव ,,,,,,सत्यम शिवम सुंदरम बन जाता है ,,,।।
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दीप्ति राय (दीपांजलि)
सहायक अध्यापक
प्राथमिक विद्यालय रायगंज खोराबार गोरखपुर
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