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झंझावत

झंझावत

हृदय के बंद कपाटो में 
झंझावत कुछ ऐसा आया ।
जो कुछ था दृष्टि से दूर ,,
उसको अपने निकट पाया। जिसका कल्पित रूप कभी धुंधला धुंधला सा लगता था 
पल में वो स्पष्ट ,,
प्रक्षर्लित सा होने लगा।
वाणी जो मृदुल लगती थी
 वह वाणी भी अब मौन हुई। धुंधली सी हुई दिशाएं सब
 सन्नाटे सा कोहरा उमड़ने लगा।
अडिंग था संकल्प मेरा
अपने अपूर्ण उद्देश्यों पर
डगमगा सा गया कुछ क्षण में 
समय के,,,,,, प्रचंडित झंझावत से
शैने -शैने समाप्त हुआ ,,
, हर विकल्प जो मन में बैठा था।
एक विकसित रूप लेकर 
समय का झंझावत आया,,,
 उड़ा ले गया अपने साथ 
सारी सृजित कल्पनाएं !
मंद मंद सी पड़ने लगी 
अभिलाषाओं की तीव्र ध्वनि ! स्मृतियां,,! अब विस्मृत हुई ,,।
सिमट कर रह गए चक्षु स्वप्न,,
आवेगित सा उथल-पुथल जीवन अशांत,क्रोधित ,कंपित 
आभास लिए ,,,!
 शब्द विलीन किए बैठा हृदय कहने को अब शब्द कहां ,,
जो जीवन रूपी तरु खड़े 
वो उखड़ पड़े झंझावत से,,।
वह गर्म हवा का झंझावत,,
करुणा जिसमें पिघल पड़ी ।  झंझावत,,,, ये ऐसा झंझावात,,,,
जो साथ उड़ा ले गई
 मेरी वेदना सारी,,,,,।।

✍️
दीप्ति राय (दीपांजलि)
सहायक अध्यापक
प्राथमिक विद्यालय रायगंज खोराबार गोरखपुर

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