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तरु बोध......

तरु बोध......
एक वृक्ष तो अनकहे,
अपनी बात बताता है।
हरा भरा बन पृथ्वी को
सुंदर से सुंदर तम बनाता है,
कभी फूल की सुगंध,
तो कभी फल का स्वाद ,
चखाता है ।
एक वृक्ष तो अनकहे ,
अपनी बात बताता है ।
जड़ों से जुड़ कर धरती को मां,
तो हवाओं में फैल कर,
आकाश को पिता बनाता है,
कभी पथिक का ठौर बन,
तो कभी पक्षियों का बसेरा बन,
मन ही मन इठलाता है ।
एक वृक्ष तो अनकहे,
अपनी बात बताता है ।
छोटे बीज में भी बढ़ने का,
हौसला दिखलाता है,
सुंदर काया में ढलकर,
जड़ को जहां बनाता है ।
सूखे गिरते पत्तों में भी,
समर्पण का भाव,
वही पहचानता है ।
एक वृक्ष तो अनकहे,
अपनी बात बताता है ।
जाने अनजाने मानव भी जब,
ठेस लगाता है,
पर्यावरण का संतुलन कर,
उसके जीवन का ही,
दाता कहलाता है ।
एक वृक्ष तो अनकहे,
अपनी बात बताता है।

✍️
सुकीर्ति तिवारी
सहायक अध्यापक
कम्पोजिट उच्च प्राथमिक विद्यालय करहिया, जंगल कौड़िया गोरखपुर

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