वो बूढ़ी मां 🙏🏻
वो बूढ़ी मां 🙏🏻
घर की दहलीज पर बैठी
अपने अश्कों से भिगोती दामन
वो बूढ़ी मां,,,,!
क्या जुल्म हुआ क्या बेबसी गुमसुम कोने में अकेले ही सिसकती ,,,,
वो बूढ़ी मां ,,,,!
तिनकों ,तिनकों से सजाया आशियां जो कल तक
उसी आशियाने में
नौकर सी लगती ,,,,!
वो बूढ़ी मां,,,!
चावल से तिनकों को बिनती
गेहूं की धूल सूप से उड़ाती
अन्न का कण-कण संभालती
फिर भी अन्न को मोहताज,,
वो बूढ़ी मां,,!
सीच ममता की आंचल तले लुटा दिया जिन पर अपना सब कुछ
उन्हीं के ताने सुन
चौका बर्तन बूढ़ी धुंधली आंखों से रसोई में खाना पकाती
सबके तन के कपड़े भी धोती
वो बूढ़ी मां,,,,,!
अपने हिस्से की रोटी से भी जिसने बेटे की भूख मिटाई
वही आज उससे एक रोटी तक पूछने ना आया,,,,!
जिनके लिए हर दिन
तरक्की के सपने संजोती
आंखों का नूर बना
काला टीका माथे सजा
दुनिया की काली नजरों से बचाती
उन्हीं आंखों में खटकती अब
वो बूढ़ी मां,,,,!
झुकी कमर कातर सी काया
चेहरे पर बेबसी की अनगिनत लकीरे लिए ,,
अपना बोझ खुद अकेले ही ढोती वो बूढ़ी मां ,,,,!
देख संतान की निर्दयी आंखों में
ये सवाल पूछती,,,,
क्या इसी दिन के लिए जन्मा था तुझे ,,,,?
बड़ी बेबसी से निहारती अपने बुढ़ापे की लाठी को
वो बूढ़ी मां,,,,!!
✍️
दीप्ति राय ( दीपांजलि )
प्राथमिक विद्यालय रायगंज
खोराबार गोरखपुर
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