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llरंग बदलते देखा हैll

llरंग बदलते देखा हैll

सूरज ढलते देखा है
रंग बदलते देखा है।

हमने झूंठी आंचों पर
सच को जलते देखा है।

माटी के बाज़ारों में
पुतले चलते देखा है।

भूंखे प्यासे बचपन को
घुट-घुट पलते देखा है।

मजबूरी में जिस्मों को
नुचते-मसलते देखा है।

बेबस बूढ़ी आँखों की
पीर निकलते देखा है

वो गिरगिट तो ना था,फिर भी
रंग बदलते देखा है।

बोझिल पलकों के भीतर भी
सपने पलते देखा है।

काले बादल की छाती पर
चांद टहलते देखा है।


✍️ अभिलाषा सिंह
शौक्षिक योग्यता--एम.ए बी.एड
    (सहायक अध्यापिका)
प्राथमिक विद्यालय-गौसपुर टिकरी
विकास क्षेत्र-मंझनपुर
जनपद-कौशाम्बी
रेडियो दूरदर्शन कार्यक्रम में सक्रिय एवं कवयित्री

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